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माहि सरोवर सौरभ लै

माहि सरोवर सौरभ लै, ततकाल खिले जलजातन मैं कै

नीठि चलै जल वास अचै, लपटाइ लता तरु मारग मैं कै

पोंछत सीतन तैं श्रम स्वेदन, खेद हरै सब राति रमै कै

आवत जाति झरोखन कैं मग, सीतल बात प्रभात समै कै।

है यह आजु बसन्त समौ

है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ

अंध कै गंध बढ़ाय लै जात है, मंजुल मारुत कुंज गली कौ

कैसेहुँ भोर मुठी मैं पर्यौ, समुझैं रहियौ न छुट्यौ नहिं नीकौ

देखति बेलि उतैं बिगसी, इत हौ बिगस्यौ बन बौलसरी कौं।।

बौरसरी मधुपान छक्यौ

बौरसरी मधुपान छक्यौ, मकरन्द भरे अरविन्द जु न्हायौ

माधुरी कुंज सौं खाइ धका, परि केतकि पाँडर कै उठि धायौ

सौनजुही मँडराय रह्यौ, बिनु संग लिए मधुपावलि गायौ

चंपहि चूरि गुलाबहिं गाहि, समीर चमेलिहि चूँवति आयौ।।

जाके लिए घर आई घिघाय

जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।

खेलत फाग दुहूँ तिय कौ

खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
प्यार जनाय घरैंनु सौं लै, भरि मूँठि गुलाल दुहूँ दृग दीनौ
लोचन मीडै उतै उत बेसु, इतै मैं मनोरथ पूरन कीनौ
नागर नैंक नवोढ़ त्रिया, उर लाय चटाक दै चूँबन लीनौ।

नील पर कटि तट

नील पर कटि तट जटनि दै मेरी आली,
लटुन सी साँवरी रजनि सरसान दै,
नूपुर उतारन किंकनी खोल डारनि दै
धारन दै भूषन कपूर पान खान दै,
सरस सिंगार कै बिहारी लालै बसि करौ
बसि न करि सकै ज्यौं आन प्रिय प्रान दै,
तौ लगि तू धीर धर एतौ मेरौ कह्यौ करि
चलिहौं कन्हैया पै जुन्हैया नैंकु जानि दै।।

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