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षड़यंत्र के खिलाफ

सीरिया में
उड़ा दिये गये
छत स्कूलों के
उड़ गए
खिड़कियों- दरवाजों के परखच्चे
पत्तों के माफिक

पेशावर में
गोलियों से भून दिया गया
अपनी-अपनी कक्षाओं में
पढ़ रहे बच्चों को
ज़िंदा जला दिया गया
स्कूल की प्राचार्या को
जो चाहती तो
भाग कर बचा सकती थी
फ़कत अपनी जान

इधर बस्तर के घने जंगलों में
आम है
स्कूलों को बंद करने का षड़यंत्र

पर
जैसे ही गुजरते हैं
कुछ गरम दिन
गुजरती हैं जैसे ही
चंद ठंडी काली रातें
शांत हो जाते हैं जैसे ही
बारूद रेत और धूल के बवंडर
जाने कहाँ से अचानक
उड़ आए बादलों की तरह
दौड़ पड़ते हैं बच्चे
पीठ पर बस्ता टिकाए
स्कूलों की ओर…

जड़ें

सोचता हूँ
कहाँ होती है
उनकी जड़ें
जो गाँव छोड़
दिल्ली चले जाते है
जिनके पीछे
रह जाते हैं
माँ बाबूजी दद्दा दादी या परदादी
या इनमें से कोई एक या दो
खपरैल की छत बदले जाने के इंतज़ार में मकान
एक बदहाल खेत
पानी को तरसता कुँआ
चंद पेड़ बबूल और इमली के
रिश्तों को निबाहते बर्तन, खाट और
धूल अटीं कक्षा ग्यारवीं या बारह्वीं की किताबें…
सोचता हूँ
कहाँ होती हैं उनकी जड़ें
जिनकी जड़ें जमी ही नहीं होती हैं कहीं
जो घूमते रहते हैं गाँव से कस्बा कोई
या कस्बे से शहर
सिमटता परिवार लेकर
जिसमें सदस्य केवल तीन या चार ही होते हैं
जो विवश होते हैं फोन पर किसी मित्र को झूट बोलने को
कि वे घर पर होते हुए भी नहीं होते हैं घर पर
जो कभी किसी गाँव कस्बे या शहर को
अपना नहीं कह सके
कहाँ होती हैं उनकी जड़ें…
कहाँ होती हैं उनकी जड़ें
जो जड़ों से उखाड़ दिये गये हैं
सोचता हूँ..

आजमगढ़ के भीतर कोई गाँव

(रबीश के लिए)

इस गाँव में
नेता कोई नहीं आता
दरअसल यहाँ झगड़ा नहीं होता कोई

यहाँ घर हैं कई ऐसे
जहाँ एक ही है
बीच वाली दीवार
हिंदू की दीवार पर
खुदी है कोई तहरीर
और मुस्लिम वाली दीवार
जो सड़क की ओर है
पर बना है शिव का त्रिशूल
मस्ज़िद का दरवाज़ा
खुलता है हिंदू की ओर
और दोनों घरों की नालियाँ
खुलती है सड़क पर
बढ़ रहा है दोनों घरों की
लड़कियों का कद
और कम पड़ने लगी है
गोबर थापने की जगह…

अम्मा के हिस्से का दूध

(प्रिए मित्र पीयूष दूबे के लिए)
मेरे गाँव में
भैंस ने बच्चा जना है
सुना है
भैंस के बच्चे से
बेहद प्यार करती है अम्मा
अकसर झगड़ लेती है पिता से
कि भैंस के बच्चे को
मिलना ही चाहिए
उसके हिस्से का दूध

याद है मुझे
जब तक रहा मैं गाँव में
मेरे ही हिस्से आता रहा
अम्मा के हिस्से का दूध!!

चुप

पिता के पिता ने कहा
पिता से
चोप्प
दुबक गए पिता
किताबों की अलमारी के पीछे

पिता ने मुझसे कहा
चुप
मैंने दरवाजा खोला
बाहर निकल गया घर से
और बाहर ही रहा
खाने के वक्त तक
घूमता रहा इधर-उधर
बेमतलब

मैंने बेटी से कहा
चुप्प
उसने पलट कर जवाब दिया!!

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