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मैं सपने देखती हू

मैं सपने देखती हूँ इस जहाँ में
कोई ऐसा छोर होगा
जहाँ न भीड़ होगी और न ही शोर होगा ।

मधुर एकान्त होगा और निर्भय शान्ति होगी
न होगी भूख और न प्यास होगी

न तू होगा न मैं
न ही कोई संवाद होगा
धरा निशब्द होगी और गगन भी मौन होगा ।

रचनाकाल : 25 फ़रवरी 2009

समय से यूँ हूँ परे आनंदमय आभास हूँ

समय से यूँ हूँ परे आनंदमय आभास हूँ
मैं उमड़ते बादलों-सा सिन्धु का उल्लास हूँ
कल्पना हूँ, कामना हूँ या किसी की प्यास हूँ
चन्द्रमा की चाँदनी या फूल का वातास हूँ
शाश्वती सौरभ भरी बासंती मधुमास हूँ
इन्द्रधनुषी रंगों-सी रागिनीमय श्वास हूँ
भावना से सिक्त उर का एक बस उच्छ्वास हूँ

 

 

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