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बुनियाद हुसैन ज़हीन की रचनाएँ

गमों से प्यार न करता तो और क्या करता

गमों से प्यार न करता तो और क्या करता
ये दिल फ़िगार न करता तो और क्या करता

वो ज़ुल्म करता था मज़लूम पे तो मैं उस पर
पलट के वार न करता तो और क्या करता

वो अहद करके गया था कि लौट आऊंगा
मैं इन्तिज़ार न करता तो और क्या करता

था जिस फ़साने का हर लफ़्ज़ दास्ताने-अलम
वो अश्कबार न करता तो और क्या करता

समझ लिया मुझे मंसूर एक दुनिया ने
कुबूल दार न करता तो और क्या करता

जो ज़ख्म तूने दिए उनको गम के धागे में
पिरो के हार न करता तो और क्या करता

मेरे यकीं पे जो उतरा नहीं खरा तो उसे
मैं शर्मसार न करता तो और क्या करता

ज़हीन उसके सिवा कौन था मेरा हमदर्द
मैं उससे प्यार न करता तो और क्या करता

इस एक ज़ौम में जलते हैं ताबदार चराग़

इस एक ज़ौम में जलते हैं ताबदार चराग़
हवा के होश उड़ाएँगे बार – बार चराग़

जो तेरी याद में मैंने जला के रक्खे हैं
तमाम रात करे हैं वो बेक़रार चराग़

ख़मोश रह के सिखाते हैं वो हमें जीना
जो जल के रोशनी देते हैं बेशुमार चराग़

हर एक दौरे-सितम के हैं चश्मदीद गवाह
इसी लिए तो हैं दुनिया से शर्मसार चराग़

ज़माने भर में हमीं से है रोशनी का वजूद
उठा के सर ये कहेंगे हज़ार बार चराग़

तुम्हारे चेहरे कि ताबिंदगी के बाइस ही
मेरी निगाह में रोशन हैं बेशुमार चराग़

इन्हें हक़ीर समझने कि भूल मत करना
हवा के दोश पे हो जाते हैं सवार चराग़

बुझा सके न जिन्हें तेज़ आंधियां भी ‘ज़हीन’
वही तो होते हैं दरअस्ल जानदार चराग़

कौन कहता है सिर्फ़ ध्यान में है

कौन कहता है सिर्फ़ ध्यान में है
वो मेरे दिल में मेरी जान में है

जिसके पर नोच डाले थे तुम ने
वो परिंदा अभी उड़ान में है

कल कोई फ़ासला न था हम में
बेरूख़ी आज दरमियान में है

ज़िंदगी की तबाही का सामाँ
दौरे हाज़िर की हर दुकान में है

वो सुनेगा मेरी दुआओं को
इतनी तासीर तो ज़बान में है

है गवाहों पे फ़ैसले का मदार
झूठ ही झूठ बस बयान में है

कितने दुश्वार मरहले हैं ज़हीन
ज़िंदगी सख़्त इम्तिहान में है

तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने

तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने
हमको मालूम है कहाँ कितने

बागबानो से पूछते रहिए
और जलने है गुलिस्ताँ कितने

तेरे दिल पर हसीन यादों के
छोड़ जाऊँगा मैं निशां कितने

ए परिंदे उड़ान भर के देख
तेरे आगे हैं आस्मां कितने

ऐसे पल जिनमें तेरा साथ न था
मुझ पे गिरे हैं वो गिरां[1] कितने

एक ताबिर के न होने से
हो गये ख्वाब रायगां[2] कितने

ये ज़माने पे खुल न जाए कहीं
राज़ है अपने दरमियाँ कितने

ढूँढ़ने से कहीं खुशी न मिली
गम मिले है यहाँ वहाँ कितने

ज़िंदगी में कदम कदम पे ज़हीन
देने पड़ते हैं इम्तिहां कितने

हैं भरम दिल का मोतबर रिश्ते

हैं भरम दिल का मोतबर रिश्ते
आज़माओ तो मुख्तसर रिश्ते

हो गए कितने दर-ब-दर रिश्ते
अपने ही खून में हैं तर रिश्ते

कल महकते थे घर के घर, लेकिन
बन गए आज दर्दे -सर रिश्ते

उनसे उम्मीद ही नहीं रक्खी
वरना रह जाते टूट कर रिश्ते

कम ही मिलते हैं इस ज़माने में
दर्द के, गम के, हमसफ़र रिश्ते

मैं इन्हें मरहमी समझता था
हैं नमक जैसे ज़ख्म पर रिश्ते

हैं ये तस्बीह के से दाने “ज़हीन”
बिखरे-बिखरे से हैं मगर रिश्ते

क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ

क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे – ज़र्रे में है धनक तेरी

क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी

कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है

हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं

तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?

तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

नस्ले-आदम में सादगी भर दे

नस्ले-आदम में सादगी भर दे
अब तो इन्साँ में आजिज़ी भर दे

बिस्तरे-मर्ग पे जो लेटे हैं
उनकी साँसों में ज़िन्दगी भर दे

हम ग़रीबों के आशियानों में
मेरे मालिक तू रोशनी भर दे

भीगी-भीगी रहें मेरी पलकें
इनमें एहसास की नमी भर दे

फ़स्ले-गुल और मैं तही-दामन
मेरे दामन में भी ख़ुशी भर दे

अब तो सारा चमन शबाब पे है
पत्ते-पत्ते में सरख़ुशी भर दे

तेरे नग़मे हों क्यूँ उदास ज़हीन
इनकी रग-रग में शाइरी भर दे

सर ख़ुशी की ज़ीस्त में सौग़ात लेकर आएगा

सर ख़ुशी की ज़ीस्त में सौग़ात लेकर आएगा
जब कोई बच्चा नए जज़्बात लेकर आएगा

वक़्त जब मजबूरी -ए-हालात लेकर आएगा
ख़ून में डूबे हुए दिन-रात लेकर आएगा

ग़म तेरी बर्बादियों का देख लेना एक दिन
जान पर मेरी कई सदमात लेकर आएगा

अब वो मेरे सहन -ए-दिल में जब भी रक्खेगा क़दम
मेरे हिस्से की ख़ुशी भी साथ लेकर आएगा

मेरे ज़ख़्मों को वो फिर से ताज़ा करने के लिए
बातों -बातों में पुरानी बात लेकर आएगा

हम ग़रीबों की दुआओं का नया बदला ज़हीन
रहमतों की इक नई बरसात लेकर आएगा

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