जगजीवन की रचनाएँ
यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई। का तकसीर भई धौं मोहि तें, डारे मोर पिय सुधि बिसराई॥ अब तो चेत भयो… Read More »जगजीवन की रचनाएँ
यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई यह नगरी महँ परिऊँ भुलाई। का तकसीर भई धौं मोहि तें, डारे मोर पिय सुधि बिसराई॥ अब तो चेत भयो… Read More »जगजीवन की रचनाएँ