विश्वप्रकाश ‘कुसुम’ की रचनाएँ
आलू-गोभी! दावत ने है मन ललचाया! क्या लोगे तुम आलू-गोभी? क्या खाओगे आलू-गोभी? गोभी का है स्वाद बढ़ाया! सबकी यही पुकार-आलू-गोभी सब करते तकरार-आलू-गोभी! जैसी… Read More »विश्वप्रकाश ‘कुसुम’ की रचनाएँ
आलू-गोभी! दावत ने है मन ललचाया! क्या लोगे तुम आलू-गोभी? क्या खाओगे आलू-गोभी? गोभी का है स्वाद बढ़ाया! सबकी यही पुकार-आलू-गोभी सब करते तकरार-आलू-गोभी! जैसी… Read More »विश्वप्रकाश ‘कुसुम’ की रचनाएँ