शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान की रचनाएँ
वन्दना वन्दना माँ! मुझे तुम लोक मंगल साधना का दान दो, शब्द को संबल बनाकर नील नभ सा मान दो। नित करूं पूजन तुम्हारा प्राण… Read More »शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान की रचनाएँ
वन्दना वन्दना माँ! मुझे तुम लोक मंगल साधना का दान दो, शब्द को संबल बनाकर नील नभ सा मान दो। नित करूं पूजन तुम्हारा प्राण… Read More »शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान की रचनाएँ
अर्थ खोते जा रहे हैं शब्द खोखे डुगडुगी हैं अर्थ खोते जा रहे हैं शौर्य की पनडुब्बियों को शेर खेते थे कभी भट्टियों की धौंकनी… Read More »शीला पाण्डेय की रचनाएँ
गंगा की पुकार एक सुर में राग ये छिड़ने दे मुझको मलिन मत होने दे बहने दे, बहने दे मुझे अविरल-अविरल बहने दे मैं गंगा….।… Read More »शीला तिवारी की रचनाएँ
मेरे खिलौने मेरे खिलौने हैं अनमोल, कोई लंबे, कोई हैं गोल। कुत्ता, बंदर भालू, शेर, मिट्टी के ये पीले बेर। इक्का, साइकिल, टमटम, ट्रेन, रंग-बिरंगी… Read More »शीला गुजराल की रचनाएँ
वो कहाँ चश्मे-तर में रहते हैं वो कहाँ चश्मे-तर में रहते हैं ख़्वाब ख़ुशबू के घर में रहते हैं शहर का हाल जा के उनसे… Read More »शीन काफ़ निज़ाम की रचनाएँ
समय उड़ रहा पंख लगाकर समय उड़ रहा पंख लगाकर, दो पल तो जी लें, मुस्का लें। जीवन की आपा-धापी से आओ थोड़ा चैन चुरा… Read More »शीतल बाजपेयी की रचनाएँ
हमने क़ुदरत की हर इक शै से मोहब्बत की है हमने क़ुदरत की हर इक शै से मोहब्बत की है । और नफ़रत की हर… Read More »ओम प्रकाश नदीम की रचनाएँ
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं गधे हँस… Read More »ओम प्रकाश ‘आदित्य’ की रचनाएँ
सपनों की उधेड़बुन एक-एक कर उधड़ गए वे सारे सपने जिन्हें बुना था अपने ही ख़यालों में मान कर अपने ! सपनों के लिए चाहिए थी… Read More »ओम पुरोहित ‘कागद’ की रचनाएँ
ठहरो साथी आगे है भीषण अंधकार ठहरो साथी, कर लो थोड़ा मन में विचार ठहरो साथी! दासता-निशा का भोर कहो किसने देखा? जंगल में नाचा… Read More »ओम नीरव की रचनाएँ