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आधुनिक काल

रम्ज़ आफ़ाक़ी की रचनाएँ

घर है तिरा तू शौक़ से आने के लिए आ घर है तिरा तू शौक़ से आने के लिए आ लेकिन मैं ये चाहूँगा न… Read More »रम्ज़ आफ़ाक़ी की रचनाएँ

रम्ज़ अज़ीमाबादी की रचनाएँ

ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है मैं मुसाफ़िर हूँ मगर ज़ाद-ए-सफ़र… Read More »रम्ज़ अज़ीमाबादी की रचनाएँ

रमेशचन्द्र शाह की रचनाएँ

तोते उग रहा रक्त उगते -उगते चुग रहा रक्त फल रहा रक्त फलते फलते चल रहा रक्त दो पहर -पेड़ खिड़की पर खड़े -खड़े सहसा… Read More »रमेशचन्द्र शाह की रचनाएँ

रमेशचंद्र पंत की रचनाएँ

चिड़िया आओ  हुआ सवेरा, चिड़िया आओ खिड़की से भीतर घुस आओ, दादा जी हैं गए टहलने चलो, बैठ कुर्सी पर जाओ। आया है अखबार अभी… Read More »रमेशचंद्र पंत की रचनाएँ

रमेश ऋतंभर की रचनाएँ

एक उत्तर आधुनिक समाज की कथा एक आदमी सुबह से शाम तक खेत जोतता है एक आदमी सुबह से शाम तक फावड़ा चलाता है एक… Read More »रमेश ऋतंभर की रचनाएँ

रमेश राज की रचनाएँ

मन करता है पर्वत-पर्वत बर्फ जमी हो, जिस पर फिसल रहे हों! फूलों की घाटी हो कोई- उसमें टहल रहे हों! ऐसे कुछ सपनों में… Read More »रमेश राज की रचनाएँ

रमेश रंजक की रचनाएँ

यही बेहतर इधर दो फूल मुँह से मुँह सटाए बात करते हैं यहीं से काट लो रस्ता यही बेहतर हमें दिन इस तरह के रास… Read More »रमेश रंजक की रचनाएँ

रमेश प्रजापति की रचनाएँ

नंगी पीठ पर पहाड़ की नंगी पीठ पर बिखर जाते हैं टकराकर धरती पर मौसम तालाब की नंगी पीठ पर मौज़-मस्ती करते हैं जलपाखी सड़क… Read More »रमेश प्रजापति की रचनाएँ

रमेश नीलकमल की रचनाएँ

हो वसन्त! अँखियन में लउकता बबूल हो वसन्त! जनि अइहऽ गाँव का सिवाना पर। अभिये नू खेत के फसल हरियर पाला से सहमल झऊँसाइल बा,… Read More »रमेश नीलकमल की रचनाएँ

रमेश तैलंग की रचनाएँ

महाश्वेता क्या लिखती हैं महाश्वेवता गल्प नहीं लिखतीं । महाश्वेता रचती हैं आदिम समाज की करुणा का महासंगीत । वृक्षों की, वनचरों की, लोक की… Read More »रमेश तैलंग की रचनाएँ