एन. आर. सागर की रचनाएँ
तब तुम्हें कैसा लगेगा? यदि तुम्हें ज्ञान के आलोक से दूर अनपढ़-मूर्ख बनाकर रखा जाए, धन-सम्पति से कर दिया जाए- वंचित छीन लिए जाएँ अस्त्र-शस्त्र… Read More »एन. आर. सागर की रचनाएँ
तब तुम्हें कैसा लगेगा? यदि तुम्हें ज्ञान के आलोक से दूर अनपढ़-मूर्ख बनाकर रखा जाए, धन-सम्पति से कर दिया जाए- वंचित छीन लिए जाएँ अस्त्र-शस्त्र… Read More »एन. आर. सागर की रचनाएँ
आहया असा-ए-मूसा अँधेरी रातों की एक तज्सीम मुंजमिद जिस में हाल इक नुक़्ता-ए-सुकूनी न कोई हरकत न कोई रफ़्तार जब आसमानों से आग बरसी तो… Read More »एजाज़ फारूक़ी की रचनाएँ
सेल्युलर जेल सेल्युलर जेल के गलियारों में घूमते हुए, तेरह बाइ सात की काल कोठरियों में साँस लेते हुए मैं वही नहीं रह गया था;… Read More »एकांत श्रीवास्तव की रचनाएँ
फ़सलें दाने तो इच्छा के बोए थे ज़हरीली फ़सलें क्यों उग आईं पढ़े-लिखे लोगों ने सोचा था ख़ुशहाली इस रस्ते आएगी नई रोशनी में यह… Read More »ऋषिवंश की रचनाएँ
तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके कितने मचल उठे थे जज्बात चुपके-चुपके। बिखरे हुए हैं ख़्वाबों के… Read More »ऋषिपाल धीमान ऋषि की रचनाएँ
अश्लील है तुम्हारा पौरुष पहले वे लंबे चोगों पर सफ़ेद गोल टोपी पहनकर आए थे और मेरे चेहरे पर तेजाब फेंककर मुझे बुरके में बाँधकर… Read More »ऋषभ देव शर्मा की रचनाएँ
कभी इतनी धनवान मत बनना कभी इतनी धनवान मत बनना कि लूट ली जाओ सस्ते स्कर्ट की प्रकट भव्यता के कारण हांग्जो की गुड़िया के… Read More »ऋतुराज की रचनाएँ
शिशु दोहावली (१) जीव अनेकों में रमे, यद्यपि हो तुम एक, नाथ! तुम्हे कितने कहे, एक कहें कि अनेक (२) रे जग- पथ के पथिक!… Read More »शिशु पाल सिंह ‘शिशु’की रचनाएँ
शब्द नहीं कह पाते कोई बिम्ब,कोई प्रतीक ,कोई उपमान नहीं समझ पाते ये भाव अनाम जैसे पूर्ण विराम के बाद शून्य-शून्य-शून्य और पाठक रुक कर… Read More »ऋतु पल्लवी की रचनाएँ
मैं अपने हर जन्म में “मैं अपने हर जन्म में स्त्री ही होना चाहूँगी”। मैंने एक दिन अपनी प्रार्थना ईश्वर के कानो में फुसफुसायी। ईश्वर… Read More »ऋतु त्यागी की रचनाएँ