फ़र्रुख़ ज़ोहरा गीलानी की रचनाएँ
बीते लम्हे कशीद करती हूँ बीते लम्हे कशीद करती हूँ इस तरह जश्न-ए-ईद करती हूँ जब भी जाती हूँ शहर-ए-शीशागराँ कुछ मनाज़िर ख़रीद करती हूँ… Read More »फ़र्रुख़ ज़ोहरा गीलानी की रचनाएँ
बीते लम्हे कशीद करती हूँ बीते लम्हे कशीद करती हूँ इस तरह जश्न-ए-ईद करती हूँ जब भी जाती हूँ शहर-ए-शीशागराँ कुछ मनाज़िर ख़रीद करती हूँ… Read More »फ़र्रुख़ ज़ोहरा गीलानी की रचनाएँ