अली अख़्तर ‘अख़्तर’ की रचनाएँ
चंद शे’र कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये। दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ[1] हो गया॥ कब हुई आपको तौफ़ीके़-करम[2]। आह! जब ताक़ते फ़रियाद नहीं॥ करवटें लेती है फूलों में शराब।… Read More »अली अख़्तर ‘अख़्तर’ की रचनाएँ
चंद शे’र कोई और तर्ज़े-सितम सोचिये। दिल अब ख़ूगरे-इम्तहाँ[1] हो गया॥ कब हुई आपको तौफ़ीके़-करम[2]। आह! जब ताक़ते फ़रियाद नहीं॥ करवटें लेती है फूलों में शराब।… Read More »अली अख़्तर ‘अख़्तर’ की रचनाएँ