संजय अलंग की रचनाएँ
सलवा जुडूम के दरवाज़े से (1) जंगल के बीच निर्वात तो नहीं था सघनता के मध्य समय दूर तक बिखरा था और उसी से सामना… Read More »संजय अलंग की रचनाएँ
सलवा जुडूम के दरवाज़े से (1) जंगल के बीच निर्वात तो नहीं था सघनता के मध्य समय दूर तक बिखरा था और उसी से सामना… Read More »संजय अलंग की रचनाएँ
सपने जिन चीटियों को पैरों तले दबा दिया था मैंने कभी अनजाने में वो अक्सर मुझे मेरे सपनों मे आकर काटतीं हैं उनके डंक पूरे… Read More »संगीता मनराल की रचनाएँ
लांघना मुश्किल है लांघना मुश्किल हैहमारे बीच पसरेसन्नाटे कोपर असंभव भी तो नहींकभी पुकार कर देखनाया फिरअपने मौन में हीसुन सकोतो सुननामेरी धड़कन जानती हूँतुम्हारी… Read More »संगीता गुप्ता की रचनाएँ
पिता बरसों हो गए / कोशिश जारी है / उसकी तरह बनने की उसकी तरह सोचने की परिवार के लिए, उसीकी तरह कमाऊ और रक्षक… Read More »संगीता कुजारा टाक की रचनाएँ