कुँअर बेचैन की रचनाएँ
पिन बहुत सारे (कविता) जिंदगी का अर्थ मरना हो गया है और जीने के लिये हैं दिन बहुत सारे । इस समय की मेज़ पर… Read More »कुँअर बेचैन की रचनाएँ
पिन बहुत सारे (कविता) जिंदगी का अर्थ मरना हो गया है और जीने के लिये हैं दिन बहुत सारे । इस समय की मेज़ पर… Read More »कुँअर बेचैन की रचनाएँ
राष्ट्र-ध्वजा का प्रश्न प्रश्न पूछती फिरती सबसे राष्ट्र-ध्वजा इस देश की- ‘तुमको ममता मेरी ज़्यादा है, या अपनी देह की? क्या उत्तर दोगे तुम अपनी… Read More »शैलेश मटियानी की रचनाएँ
कुँअर उदयसिंह अनुज के दोहे-1 कैसा सींचा आपने, कैसी करी सँवार। उपजाऊ इस खेत की, फ़सलें हैं बीमार। ग़लत जुटाया आपने, यह साज़ो-सामान। बनते-बनते ढह… Read More »कुँअर उदयसिंह ‘अनुज’ की रचनाएँ
बादल के पंख बादल के पंख बड़े प्यारे हैं, डैडी! मेरे भी पंख अगर होते, बादल के बच्चों से करता तब दोस्ती, उड़ते हम साँझ… Read More »शैलेश पंडित की रचनाएँ
जंगल-1 किसी अनजानी जगह में कोई अनजाना किससे राह पूछे जहाँ सबको अपनी-अपनी पड़ी हो वहाँ कौन किसकी बात सुने यहाँ सबने सीखी हुई है… Read More »कीर्त्तिनारायण मिश्र की रचनाएँ
अदृश्य थे, मगर थे बहुत से सहारे साथ अदृश्य थे, मगर थे बहुत से सहारे साथ. निश्चिन्त हो गया हूँ कि तुम हो हमारे साथ.… Read More »शैलेश ज़ैदी की रचनाएँ
लता-1 बड़े-बड़े गुच्छों वाली सुर्ख़ फूलों की लतर : जिसके लिए कभी ज़िद थी — ’यह फूले तो मेरे ही घर !’ अब कहीं भी दिखती है… Read More »कीर्ति चौधरी की रचनाएँ
या (कविता) हताश लोगों से बस एक सवाल हिमालय ऊँचा या बछेन्द्रीपाल ? पगडंडियां भले ही नहीं लांघ पाये हों वे कोई पहाड़ मगर ऊंचाइयों का… Read More »शैलेय की रचनाएँ
वादा करके मेरे श्याम दग़ा दी तूने वादा करके मेरे श्याम दग़ा दी तूने। गै़रों के रहके सारी रात गमा दी तूने॥ शाम से रात… Read More »कीरति कुमारी की रचनाएँ
खेल-खिलौने छिन-छिनाकी बुबला-बू, मेले से लाया बिट्टू। ढम-ढम ढोलक, बाजी बीन, गांधी जी के बंदर तीन! सुनकर भालू की खड़ताल, नीलू-पीलू हैं बेहाल। उनका घर… Read More »किसलय बंद्योपाध्याय की रचनाएँ