विवेक चतुर्वेदी की रचनाएँ
डोरी पर घर आँगन में बंधी डोरी पर सूख रहे हैं कपड़े पुरुष की कमीज और पतलून फैलाई गई है पूरी चैड़ाई में सलवटों में… Read More »विवेक चतुर्वेदी की रचनाएँ
डोरी पर घर आँगन में बंधी डोरी पर सूख रहे हैं कपड़े पुरुष की कमीज और पतलून फैलाई गई है पूरी चैड़ाई में सलवटों में… Read More »विवेक चतुर्वेदी की रचनाएँ
महाराणा प्रताप अणु-अणु पै मेवाड के, छपी तिहारी छाप। तेरे प्रखर प्रताप तें, राणा प्रबल प्रताप॥ जगत जाहिं खोजत फिरै, सो स्वतंत्रता आप। बिकल तोहिं… Read More »वियोगी हरि की रचनाएँ
वैसे ही आऊँगा मंदिर की घंटियों की आवाज़ के साथरात के चौथे पहरजैसे पंछियों की नींद को चेतना आती है किसी समय के बवंडर मेंखो… Read More »विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ
क्रांति की लपट उठी क्रांति की लपट उठी शांति की जली कुटी तिनका-तिनका जल रहा चिंगारियों का झुंड बाँधकर हुजूम चल रहा क्रांति-दीप तरुण! आज… Read More »विमल राजस्थानी की रचनाएँ
दँगा — तीन कविताएँ एक एक दिन मैं भी मार दिया जाऊँगा किसी दँगे में फिर बीस साल बाद ये कहा जाएगाकि मैं मारा नहीं… Read More »विमल कुमार की रचनाएँ
हाइकु -1 झरता पत्ता – मैं कब्रों के बीच में निशब्द खड़ी। चाल में सर्प श्रृंग से भू पे जल- सद्यस्नाता स्त्री मूढ़ हाट में-… Read More »विभा रानी श्रीवास्तवकी रचनाएँ
खेल-खिलौने जन्म-दिवस पर मिले खिलौने,मुझको लगते बड़े सलोने।पास हैं मेरे दो मृगछौने,ढम-ढम ढोल बजाते बौने।ठुम्मक-ठुम्मक नाचे बाला,एक सिपाही पकडे़ भाला।धुआँ छोड़ता भालू काला,नाचे बंदर चाबी… Read More »विपुल कुमार की रचनाएँ
झड़ गए पत्ते सभी झड़ गये पत्ते सभी फिर भी हवा चलती रही पात्र ख़ुद तो चल बसे उनकी कथा चलती रही मंज़िलों से और… Read More »विपिन सुनेजा शायक़ की रचनाएँ
सृजन और अनुवाद सृजन और अनुवाद के बीच स्थिति बड़ी अजब सी होती है कुछ सिर के बाल बढ़े और कुछ दाढ़ी बढ़ी सी होती… Read More »विपिनकुमार अग्रवाल की रचनाएँ
उन ख़ाली दिनों के ना जीवन की धीमी रफ़्तार गिरफ़्त में नहीं आ सकी थीनामालूम सी गतिविधियाँबेबस परेशानियाँ ख़ुद हो गई थीं हलकानमन के घुड़सवारों… Read More »विपिन चौधरी की रचनाएँ