विजय वाते की रचनाएँ
उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं । उसकी दुनिया में आईना ही नहीं । उसकी आंखों में ये धनक… Read More »विजय वाते की रचनाएँ
उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं । उसकी दुनिया में आईना ही नहीं । उसकी आंखों में ये धनक… Read More »विजय वाते की रचनाएँ
सुखांत तुम यही करोगे अंत में मुझे दंड ख़ुद को पुरस्कार दोगे किंतु तुम्हारा किया यह अंत सिर्फ़ एक विरामचिन्ह है दिशासूचक केवल मील का… Read More »गिरिराज किराडू की रचनाएँ
आकांक्षा मैं तुम्हारी आँखों में झाँकूँ और झाँकता ही रहूँ । मैं तुम्हारी आँखों की गहराई नापूँ और नापता ही रहूँ । तुम्हारे आकाश को… Read More »गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनाएँ
प्रेम बहुत मासूम होता है प्रेम बहुत मासूम होता है यह होता है बिल्कुल उस बच्चे की तरह टूटा है जिसका दूध का एक दाँत… Read More »विजय राही की रचनाएँ
लाठी में गुण बहुत हैं लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग। गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।। तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता… Read More »गिरिधर की रचनाएँ
राष्ट्रीय गान जय जय जय जय हिन्दुस्तान जय जय जय जय हिन्दुस्तान महिमंडल में सबसे बढके हो तेरा सन्मान सौर जगत् में सबसे उन्नत होवे… Read More »गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’ की रचनाएँ
मैं न बनूँगा दादा जैसा क्या कहती है माँ, दादा के जितना बड़ा कभी हूँगा! जो हो अपने को, उन जैसा कभी न होने मैं… Read More »गिरिजादत्त शुक्ल ‘गिरिश’ की रचनाएँ
मेरे युवा-आम में नया बौर आया है मेरे युवा-आम में नया बौर आया है ख़ुशबू बहुत है क्योंकि तुमने लगाया है आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी… Read More »गिरिजाकुमार माथुर की रचनाएँ
गॉड पार्टिकल चलते चलते, उठते बैठते, यूँ ही इधर उधर मिल जाता है अक्सर गॉड पार्टिकल वो बीज बन भूमि में जाता, सूर्य बन रश्मि… Read More »गिरिजा अरोड़ा की रचनाएँ
दण्डकारण्य में माँ दण्डकारण्य के सुदूर वनांचल में बसती है माँ दन्तेश्वरी आजानुबाहु राजा के पुरखों के संचित पुण्यों से, साक्षात वरदायिनी माँ की ममता… Read More »विजय राठौर की रचनाएँ