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राकेश रंजन की रचनाएँ

अभी-अभी अभी-अभी जनमा है रवि पूरे ब्रह्मांड में पसर रही है, शिशु की सुनहरी किलकारी पहाड़ों के सीने में हो रही है गुदगुदी पिघल रही… Read More »राकेश रंजन की रचनाएँ

राकेश भारतीय की रचनाएँ

पितृपक्ष  चले गए थे पिता बारह-तेरह बरस का तब बच्चा ही था मैं और थी बीमार माँ और मुझसे भी छोटे तीन और बच्चे कई… Read More »राकेश भारतीय की रचनाएँ

राकेश प्रियदर्शी की रचनाएँ

एक बार फिर मुस्कुराओ बुद्ध हे बुद्ध! इस समकालीन परिदृश्य में, जब फट रही है छाती धरती की पसर रही है निस्तब्धता आकाश के चेहरे… Read More »राकेश प्रियदर्शी की रचनाएँ

राकेश पाठक की रचनाएँ

पिता रोज सुबह सुबह मेरी चीजें गुम हो जाती है कभी सिरहाने रखा चश्मा तो कभी तुम्हारी दी हुई घड़ी या किंग्सटन का वह पेन… Read More »राकेश पाठक की रचनाएँ

राकेश तैनगुरिया की रचनाएँ

दिलक़श है शाम ए रौशन सब कुछ नया नया है दिलक़श है शामेरौशन सब कुछ नया नया है बस सभ्यता का सूरज पश्चिम में ढल… Read More »राकेश तैनगुरिया की रचनाएँ

राकेश खंडेलवाल की रचनाएँ

फिर कहाँ संभव रहा अब गीत कोई गुनगुनाऊँ  भोर की हर किरन बन कर तीर चुभती है ह्रदय में और रातें नागिनों की भांति फ़न… Read More »राकेश खंडेलवाल की रचनाएँ

राकेश कुमार पालीवाल की रचनाएँ

आदिवासी (1) आकाश के तारों की स्तिथि से चलती हैं उनके दिमाग की सुईयां पेड के फलने फूलने से बदलते हैं उनके मौसम, महीने और… Read More »राकेश कुमार पालीवाल की रचनाएँ

रांगेय राघव की रचनाएँ

डायन सरकार डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से, छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से । हरियाली में आग लगी… Read More »रांगेय राघव की रचनाएँ