अरुणा शानबाग का कमरा क्या केवल एक पत्ता है अरुणा शानबाग का कमरा जो समय की हवा पाकर उड़ जाएगा…
देखा है मैंने श्वेत,शुभ्र बादलों का समूह अनेक आकृतियाँ बनाता है विलीन हो जाता है देखा है मैंने शिल्पी को…
बदली-बदली-सी है सारी तस्वीर आज बदली-बदली-सी है सारी तस्वीर आज ख़ुद ही तोड़ी है औरत ने ज़ंजीर आज दर्दे दिल…
तू सो जा, मेरी लाडली तू सो जा, हां सो जा, मेरी लाडली, मेरे घर की बगिया की नन्ही कली!…
भ्रष्ट समय में कविता जब ईमानदार को समझा जाता हो बेवकूफ़ समयनिष्ठ को डरपोक, कर्तव्यनिष्ठ को गदहा, तब कविता लिखना-पढ़ना-सुनना…
बेवजह दिल पे कोई बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिये ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी रखिये…
बनानी है चिडिय़ा नहीं अभी नहीं होगा अवसान अभी तो मुझे मांगना है आकाश से खुलापन और धरती से दृढ़ता…
वो जो रह-रहके चोट कर जाए वो जो रह-रहके चोट कर जाए, अपने अलफ़ाज़ से मुकर जाए, आशिक़ी,इश्क एक फजीहत…
आज़ादी इक खुशबू का नाम है, आज़ादी प्रकाश उछल उछल भुज पाश में भर ले तू आकाश पवन आज़ाद डोलती,…
फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए यकसर जहान…