क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’ की रचनाएँ
गम रो रो के कहता हूँ कुछ उस से अगर अपना गम रो रो के कहता हूँ कुछ उस से अगर अपना तो हँस के… Read More »क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’ की रचनाएँ
गम रो रो के कहता हूँ कुछ उस से अगर अपना गम रो रो के कहता हूँ कुछ उस से अगर अपना तो हँस के… Read More »क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’ की रचनाएँ