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विजय सिंह की रचनाएँ

डोकरी फूलो धूप हो या बरसात ठण्ड हो या लू मुड़ में टुकनी उठाए नंगे पाँव आती है दूर गाँव से शहर दोना-पत्तल बेचने वाली… Read More »विजय सिंह की रचनाएँ

विजय वाते की रचनाएँ

उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं । उसकी दुनिया में आईना ही नहीं । उसकी आंखों में ये धनक… Read More »विजय वाते की रचनाएँ

विजय राही की रचनाएँ

प्रेम बहुत मासूम होता है  प्रेम बहुत मासूम होता है यह होता है बिल्कुल उस बच्चे की तरह टूटा है जिसका दूध का एक दाँत… Read More »विजय राही की रचनाएँ

विजय राठौर की रचनाएँ

दण्डकारण्य में माँ दण्डकारण्य के सुदूर वनांचल में बसती है माँ दन्तेश्वरी आजानुबाहु राजा के पुरखों के संचित पुण्यों से, साक्षात वरदायिनी माँ की ममता… Read More »विजय राठौर की रचनाएँ

विजय बहादुर सिंह की रचनाएँ

असभ्य आदिम गीत देह की सुडौल भाषा और रूप की जादुई लिपि के इलाके में आज भी पुश्तैनी बाशिन्दे की तरह दर्ज़ है उसकी उपस्थिति… Read More »विजय बहादुर सिंह की रचनाएँ

विजय गौड़ की रचनाएँ

बारिश में भीगती लड़की को देखने के बाद एक झमाझम पड़ती वर्षा की मोटी धारों के बीच लड़की चुपचाप सिर पर छाता ताने चलती है… Read More »विजय गौड़ की रचनाएँ

विजय गुप्त की रचनाएँ

मुर्दा नम्बर बहुत कोशिशें कीं नहीं सुन सका टूटी हुई सिलाई वाली क़िताब के पन्नों में जैसे-तैसे अटके धागों की पुकार; समझ ही नहीं सका… Read More »विजय गुप्त की रचनाएँ

विजय कुमार की रचनाएँ

जिन दिनों बरसता है पानी  अरे वर्ष के हर्ष बरस तू बरस बरस रसधार – निराला जिन दिनों इस शहर में बरसता है पानी मंद… Read More »विजय कुमार की रचनाएँ

विजय कुमार सप्पत्ति की रचनाएँ

पूरे चाँद की रात आज फिर पूरे चाँद की रात है; और साथ में बहुत से अनजाने तारे भी है… और कुछ बैचेन से बादल… Read More »विजय कुमार सप्पत्ति की रचनाएँ

विजय कुमार पंत की रचनाएँ

तुम आओ तो तुम आओ तो इतनी निष्ठुर रातें है इन्हें जगाओ तो तुम आओ तो अंधेरों के भी अर्थ समझने थे मुझको मेरी जिज्ञासाओं… Read More »विजय कुमार पंत की रचनाएँ