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कुमार प्रशांत

कुमार प्रशांत की रचनाएँ

गंगा-1 (हमें आप्लावित कर दो!) सैकड़ों वृक्ष : जलती दोपहर : ठहरी नदी हरियाली के धब्बे समेटे धूसर-सा दिखाई देता वन! टहनियाँ बने हज़ारों हाथ प्रार्थनारत आकाश… Read More »कुमार प्रशांत की रचनाएँ