ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क की रचनाएँ
आईने के आख़िरी इज़हार में आईने के आख़िरी इज़हार में मैं भी हूँ शाम-ए-अबद-आसार में देखते ही देखते गुम हो गई रौशनी बढ़ती हुई रफ़्तार… Read More »ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क की रचनाएँ
आईने के आख़िरी इज़हार में आईने के आख़िरी इज़हार में मैं भी हूँ शाम-ए-अबद-आसार में देखते ही देखते गुम हो गई रौशनी बढ़ती हुई रफ़्तार… Read More »ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क की रचनाएँ
ख़ुलूस-ओ वफ़ा का सिला पाइएगा ख़ुलूस-ओ वफ़ा का सिला पाइएगा । हुजूम-ए तमन्ना में खो जाइएगा । दिए जाएगा ग़म कहाँ तक ज़माना, कहाँ… Read More »ज़िया फतेहाबादी की रचनाएँ
क्या सरोकार अब किसी से मुझे क्या सरोकार अब किसी से मुझे वास्ता था तो था तुझी से मुझे बे-हिसी का भी अब नहीं एहसास… Read More »ज़िया जालंधरी की रचनाएँ
तख़ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है तख़ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है गोया कोई तस्वीर ख़यालों में जड़ी है हर मंज़र-ए-इदराक… Read More »ज़ाहिदा जेदी की रचनाएँ
हम्द हम्द[1] रोज़-ए-अज़ल[2] से रोज़-ए-अबद[3] तक इंसाँ की तक़दीर हो तुम हर तौक़ीर[4] तुम्हारी बख़्शिश[5] इल्म [6]की हर तहरीर[7] हो तुम सहराओं में पानी हर बूँद तुम्हारी ही ने’मत और दरिया… Read More »ज़ाहिद अबरोल की रचनाएँ
इज़हार का मतरूक रास्ता इज़हार-ए-मोहब्बत के लिए लाज़मी नहीं कि फूल ख़रीदे जाएँ किसी होटल में कमरा लिया जाए या परिंदे आज़ाद किए जाएँ इज़हार-ए-मोहब्बत… Read More »ज़ाहिद इमरोज़ की रचनाएँ
चुपके से बतलाना बापू तुम्हें कहूँ मैं बाबा, या फिर बोलूँ नाना? सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।। छड़ी हाथ में लेकरके… Read More »ज़ाकिर अली ‘रजनीश’की रचनाएँ
बढ़ई बढ़ई हमारे यह कहलाते, जंगल से लकड़ी मँगवाते! फिर उस पर हथियार चलाते, चतुराई अपनी दिखलाते! लकड़ी आरे से चिरवाते, फिर आरी से हैं… Read More »जहूर बख्श की रचनाएँ
बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी देखते हैं तुझे दुनिया की नज़र से हम भी… Read More »ज़हीर रहमती की रचनाएँ
दयार-ए-संग में रह कर भी शीशा-गर था मैं दयार-ए-संग में रह कर भी शीशा-गर था मैं ज़माना चीख़ रहा था के बे-ख़बर था मैं लगी… Read More »जमुना प्रसाद ‘राही’ की रचनाएँ