ममता व्यास की रचनाएँ
शब्दवती मैंने जाना शब्द कैसे पनपते हैं भीतर तुम मुझे शब्दवती करते थे हर बार मन की कोख हरी होती थी बार-बार ऐसे मैं शब्दवती… Read More »ममता व्यास की रचनाएँ
शब्दवती मैंने जाना शब्द कैसे पनपते हैं भीतर तुम मुझे शब्दवती करते थे हर बार मन की कोख हरी होती थी बार-बार ऐसे मैं शब्दवती… Read More »ममता व्यास की रचनाएँ
स्त्री स्त्री झाँकती है नदी में निहारती है अपना चेहरा सँवारती है अपनी टिकुली, माँग का सिन्दूर होठों की लाली, हाथों की चूड़ियाँ भर जाती… Read More »ममता किरण की रचनाएँ
खांटी घरेलू औरत 1. कभी कोई ऊंची बात नहीं सोचती खांटी घरेलू औरत उसका दिन कतर-ब्योंत में बीत जाता है और रात उधेड़बुन में बची… Read More »ममता कालिया की रचनाएँ
मातृभूमि जन्म दिया माता-सा जिसने, किया सदा लालन-पालन। जिसके मिट्टी जल से ही है, रचा गया हम सबका तन।। गिरिवर गण रक्षा करते हैं, उच्च… Read More »मन्नन द्विवेदी गजपुरी की रचनाएँ
फूल क्यों मुरझा रहा है आ गया मधुमास लेकिन फूल क्यों मुरझा रहा है शम्अ तो जलती है उसपर आज परवाने नहीं हैं प्यार में… Read More »मनोहर ‘साग़र’ पालमपुरी की रचनाएँ
सुनी सुनाई हुई दास्तान बाक़ी है सुनी सुनाई हुई दास्तान बाक़ी है नए नगर में पुराना मक़ान बाक़ी है ये बात सुनके किसी को यकीं… Read More »मनोहर विजय की रचनाएँ
कहाँ लड़ाई किसने खाई अरे मलाई? ‘तूने’ – ‘तूने’ ‘तूने’ – ‘तूने’ शुूरू लड़ाई तू-तू, मैं-मैं हाथापाई! अम्मा बोली- ‘काली बिल्ली तुमने पाली उसने खा… Read More »मनोहर वर्मा की रचनाएँ
दिल ज़्यादा भूकम्प से भू कम कँपी दिल गूंगा हर चौथे रोज़ ही ही दीखती थी दो तीन बरस के बच्चे के साथ डॉक्टर से… Read More »मनोहर बाथम की रचनाएँ
भूख न सही मेरी कविता में ज्वालाओं की लपट दहकते तंदूर में पकी रोटियों की भभक तो है —जो बढ़ा देती है भूख दुपहरी में… Read More »मनोहर अभय की रचनाएँ
जागो भैया शोर मचाती है गौरैया, हुआ सवेरा, जागो भैया! उठो-उठो अब आँखें खोलो, प्रातः कृत्य करो मुँह धो लो, गाती है सब प्रात चिरैया,… Read More »मनोरंजन एम.ए. की रचनाएँ