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राकेश प्रियदर्शी की रचनाएँ

एक बार फिर मुस्कुराओ बुद्ध हे बुद्ध! इस समकालीन परिदृश्य में, जब फट रही है छाती धरती की पसर रही है निस्तब्धता आकाश के चेहरे… Read More »राकेश प्रियदर्शी की रचनाएँ

राकेश पाठक की रचनाएँ

पिता रोज सुबह सुबह मेरी चीजें गुम हो जाती है कभी सिरहाने रखा चश्मा तो कभी तुम्हारी दी हुई घड़ी या किंग्सटन का वह पेन… Read More »राकेश पाठक की रचनाएँ

राकेश तैनगुरिया की रचनाएँ

दिलक़श है शाम ए रौशन सब कुछ नया नया है दिलक़श है शामेरौशन सब कुछ नया नया है बस सभ्यता का सूरज पश्चिम में ढल… Read More »राकेश तैनगुरिया की रचनाएँ

राकेश खंडेलवाल की रचनाएँ

फिर कहाँ संभव रहा अब गीत कोई गुनगुनाऊँ  भोर की हर किरन बन कर तीर चुभती है ह्रदय में और रातें नागिनों की भांति फ़न… Read More »राकेश खंडेलवाल की रचनाएँ

राकेश कुमार पालीवाल की रचनाएँ

आदिवासी (1) आकाश के तारों की स्तिथि से चलती हैं उनके दिमाग की सुईयां पेड के फलने फूलने से बदलते हैं उनके मौसम, महीने और… Read More »राकेश कुमार पालीवाल की रचनाएँ

रांगेय राघव की रचनाएँ

डायन सरकार डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से, छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से । हरियाली में आग लगी… Read More »रांगेय राघव की रचनाएँ

रहीम की रचनाएँ

श्रंगार-सोरठा गई आगि उर लाय, आगि लेन आई जो तिय । लागी नाहिं, बुझाय, भभकि भभकि बरि-बरि उठै ।।1।। तुरुक गुरुक भरिपूर, डूबि डूबि सुरगुरु… Read More »रहीम की रचनाएँ

रसिकबिहारी की रचनाएँ

गहगह साज समाज-जुत, अति सोभा उफनात गहगह साज समाज-जुत, अति सोभा उफनात। चलिबे को मिलि सेज-सुख, मंगल-मुदमय-रात॥ रही पालती पहकि लहै, सेवत कोटि अभंग। करो… Read More »रसिकबिहारी की रचनाएँ

रसिक दास की रचनाएँ

जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे। निज जन पर कर कॄपा धरत हाथ माथे। दोस… Read More »रसिक दास की रचनाएँ