शिव कुशवाहा की रचनाएँ
लोक परंपराएं लोक परंपराएँ पैठ जाती हैं गहरे तक समाज में चली आती हुई परंपरा और रीति रिवाज नहीं मिटते आसानी से लोक में जीवित… Read More »शिव कुशवाहा की रचनाएँ
लोक परंपराएं लोक परंपराएँ पैठ जाती हैं गहरे तक समाज में चली आती हुई परंपरा और रीति रिवाज नहीं मिटते आसानी से लोक में जीवित… Read More »शिव कुशवाहा की रचनाएँ
स्याह स्याह समय के गाल पर है तिल की तरह नहीं दाग़ की तरह ग़लत दिमाग़ों के उजाले में है राह में है उसे ढाँकता… Read More »शिरीष कुमार मौर्य की रचनाएँ
बैठे हों जब वो पास बैठे हों जब वो पास, ख़ुदा ख़ैर करे फिर भी हो दिल उदास, ख़ुदा ख़ैर करे। मैं दुश्मनों से बच… Read More »उदयभानु ‘हंस’ की रचनाएँ
फूल और कली फूल से बोली कली क्यों व्यस्त मुरझाने में है फ़ायदा क्या गंध औ मकरंद बिखराने में है तूने अपनी उम्र क्यों वातावरण… Read More »उदयप्रताप सिंह की रचनाएँ
कटोरे में अंगार होली की आग में माँ मुझे गेहूँ की बालें भूनने को कहती हैं। चौराहे पर जलती ढेरों लकड़ियों की सुनहली आभा पास… Read More »उदयन वाजपेयी की रचनाएँ
कर्फ्यू में लिखी एक चिट्ठी प्रिय रामदेव जी! अच्छा ही हुआ जो आप इन दिनों नहीं थे शहर में रहते भी तो क्या हमारा मिलना… Read More »उदय भान मिश्र की रचनाएँ
नींव की ईंट हो तुम दीदी पीपल होतीं तुमपीपल, दीदीपिछवाड़े का, तोतुम्हारी खूब घनी-हरी टहनियों मेंहारिल हमबसेरा लेते हारिल होते हैं हमारी तरह हीघोंसले नहीं… Read More »उदय प्रकाश की रचनाएँ
शामिल आजकल न मैं किसी उत्सव में शामिल हूँ न किसी शोक में न किसी रैली-जुलूस में किसी सभा में नहीं न किसी बाहरी ख़ुलूस… Read More »शिरीष कुमार मौर्य की रचनाएँ
हुकूमत पर ज़वाल आया तो हुकूमत पर ज़वाल आया तो फिर नामो-निशां कब तक चराग़े-कुश्त:-ए-महफ़िल से उट्ठेगा धुऑं कब तक क़बाए-सल्तनत के गर फ़लक ने… Read More »शिबली नोमानी
बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो / बदन के रूप का एजाज़ अंग अंग थी वो मिरे लिए तो मिरी रूह की… Read More »शाहीन की रचनाएँ