Skip to content

आधुनिक काल

अर्पण कुमार की रचनाएँ

जागना कोई तड़के सुबह तो कोई दिन चढ़े जगा है मगर जगा हर कोई है हर घर, हर मुहल्ला जगा है हर गाँव, हर शहर… Read More »अर्पण कुमार की रचनाएँ

अर्जुन कवि की रचनाएँ

दोहे-1-10  अर्जुन अनपढ़ आदमी, पढ्यौ न काहू ज्ञान । मैंने तो दुनिया पढ़ी, जन-मन लिखूँ निदान ।।1।। ना कोऊ मानव बुरौ, ब्रासत लाख बलाय। जो… Read More »अर्जुन कवि की रचनाएँ

अर्चना भैंसारे की रचनाएँ

पौधे की किलकारियाँ  सारी रात पिछवाड़े की ज़मीन कराहती रही लेती रही करवटें उसकी चिन्ता में सोया नहीं घर होता रहा अंदर-बाहर और अगले ही… Read More »अर्चना भैंसारे की रचनाएँ

अर्चना पंडा की रचनाएँ

मेरे चारों धाम तुम्हीं हो सीता हूँ मैं राम तुम्हीं हो मीरा मैं घनश्याम तुम्हीं हो कोई पूछे, यही कहूँगी-मेरे चारों धाम तुम्हीं हो जग… Read More »अर्चना पंडा की रचनाएँ

अर्चना कुमारी की रचनाएँ

उदासी के गीत  पिछली कई रातों की नदी में तैरती है नींद की मछलियाँ कुतरे हुए जाल लिए उदास बैठा मछुआरा ठोकता है पीठ किनारों… Read More »अर्चना कुमारी की रचनाएँ

अरुणाभ सौरभ की रचनाएँ

कोसी कछार पर वो बहती रहती है हिलक लेकर उबाल मारकर लुप्त करना चाहती है कुछ घरों को उसमें सिमटे-चिपके इतिहास के धूसर पन्ने एक… Read More »अरुणाभ सौरभ की रचनाएँ

अरुणा राय की रचनाएँ

दुनिया को बोलती-बतियाती / अरुणा राय दुनिया को बोलती-बतियाती, घूमती-फिरती, हंसती-ठहहाती, बूझती-समझती, चलती-उडती, सजती-सवरती, गुनती-बुनती, नकारती-फुफकारती औरतें चुभती हैं! मौन भी अपना मौन भी अपना… Read More »अरुणा राय की रचनाएँ

अरुण श्री की रचनाएँ

आवारा कवि अपनी आवारा कविताओं में – पहाड़ से उतरती नदी में देखता हूँ पहाड़ी लड़की का यौवन! हवाओं में सूंघता हूँ उसके आवारा होने… Read More »अरुण श्री की रचनाएँ

अरुण शीतांश की रचनाएँ

सांवली रात सुबह की पहली किरण पपनी पर पड़ती गई और मैं सुंदर होता गया शाम की अंतिम किरण अंतस पर गिरती गई और मैं… Read More »अरुण शीतांश की रचनाएँ

अरुण देव की रचनाएँ

ग़ालिब  ग़ालिब पर सोचते हुए वह दिल्ली याद आई जिसके गली-कूचे अब वैसे न थे आसमान में परिंदों के लिए कम थी जगह उड़कर जाते… Read More »अरुण देव की रचनाएँ