वीरू सोनकरकी रचनाएँ
बने रहना कोई प्रलय अंतिम नहीं, न ही कोई हार अभिशप्त है जीत में न बदल पाने को सबसे बड़ी उम्मीद है कि सबसे निर्मम… Read More »वीरू सोनकरकी रचनाएँ
बने रहना कोई प्रलय अंतिम नहीं, न ही कोई हार अभिशप्त है जीत में न बदल पाने को सबसे बड़ी उम्मीद है कि सबसे निर्मम… Read More »वीरू सोनकरकी रचनाएँ
विश्वास अंधेरी गली पार करते वक़्त एक नन्हा विश्वास हमारी उंगली थामता है और बाद में हम पाते हैं कि हमीं उनकी उंगली थामे हैं।… Read More »वीरा की रचनाएँ
इन्तिहा-ए-ज़ुल्म ये है, इन्तिहा कोई नहीं इन्तिहा-ए-ज़ुल्म ये है, इन्तिहा कोई नहीं! घुट गई है हर सदा या बोलता कोई नहीं? बाद-ए- मुद्दत आइना देखा… Read More »वीनस केसरी की रचनाएँ
सिसकी,प्यास 1-सिसकी बहुत देर रो-रोकर हलकान हो-होकर सो जाए कोई बच्चा काँधे लगकर तो नींद में जैसे बार-बार उसे सिसकी आती है ऐसे मुझे तेरी… Read More »सुधा गुप्ता की रचनाएँ
तुम्हें क्या याद आया तुम अकारण रो पड़े– हमें तो टूटा सा दिल अपना याद आया, तुम्हें क्या याद आया– तुम अकारण रो पड़े– बारिश… Read More »सुधा ओम ढींगरा की रचनाएँ
मैं हूं, मैं हूं, मैं हूं चौराहों से एक तरफ निकलती संकरी गली में स्थापित कर दी तुमने मेरी प्रतिमा लोग भारी भारी होकर आते… Read More »सुधा उपाध्याय की रचनाएँ
अकेली औरत का रोना ऐसी भी सुबह होती है एक दिन जब अकेली औरत फूट फूट कर रोना चाहती है रोना एक गुबार की तरह,… Read More »सुधा अरोड़ा की रचनाएँ
काश मैं जब तनहा सा रोता हूँ लिपटकर शब के सीने से बिखरने लगते हैं ये अश्क आँखों से करीने से ख़यालों में मिरे तुम… Read More »सुदेश कुमार मेहर की रचनाएँ
एक और बच्चा मर गया एक और बच्चा मर गया गिनती में शुमार हुआ तमाम मेहनत से सीखे ककहरे पहाड़े गुना भाग धरे रह गए… Read More »सुदीप बनर्जी की रचनाएँ
आँगन बुहारती औरतें एक औरतें आँगन बुहारती हैं मर्दों के सोये भीतर बुहारना अशकुन है इसलिए मुँह अँधेरे औरतें आँगन बुहारती हैं मर्द सोये रहते… Read More »सुदर्शन वशिष्ठ की रचनाएँ