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सुधा गुप्ता की रचनाएँ

सिसकी,प्यास

1-सिसकी

बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर
सो जाए कोई बच्चा काँधे लगकर
तो
नींद में जैसे बार-बार
उसे सिसकी आती है
ऐसे
मुझे तेरी याद आती है
बहुत देर रो-रोकर
हलकान हो-होकर ।
-0-
2-प्यास

 एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया
एक मैं ही रही प्यासी
और सबने
भर-भर प्याला
छककर पिया।

होगा किसी मुट्ठी में चाँद
किसी में सूरज,
मैंने तो
साँस-साँस
बस
ज़िन्दगी का कर्ज़
चुकता किया।
एक दिन भी
अपनी मर्ज़ी का न जिया।
-0-
3-लड़ाई

शीशे पर
आती है गौरैया
बार-बार
मारती है चोंच
एक बार-दस बार-सौ बार
हज़ार बार ।
ख़ुद पर करती प्रहार-
ख़ुद से होती घायल गौरैया

अक्सर हमारी सारी ज़िन्दगी
खुद से लड़ते , चोट खाते बीतती है।
-0-

4-अँधेरी सुरंग

कितने दिन हुए
तुमसे
बिछुड़े
कितने हफ़्ते-महीने -बरस ?
सोचती हूँ
पर कुछ याद नहीं आता ।

एक अँधेरी सुरंग से गुज़र रही हूँ
जाने कब से !
गुज़रूँगी
जाने कब तक !!

कहीं
रोशनी की एऽऽऽक लकीर नहीं !
-0-

तिनका,समय : चोर

5- तिनका

न जाने
कौन-सी कुघड़ी
मेरी
आँख में तिनका पड़ा
कि
ज़िन्दगी भर
पानी बहना नहीं रुका।

तकलीफ़ , पल दो पल साथ रहे:
बहुत तरपाती है।
ज़िन्दगी भर का साथ हो:
आदत बन जाती है
एक सीमा है
जिसे पार कर
हार अभिव्यक्ति गूँगी हो जाती है
रोता है मन बिना शब्द किए
आँख बिना कोई उलाहना दिये
आँसू बहाती है

न जाने कौन-सी कुबेला
तुमनए
मेरे मन की अँगूठी, ये अमोल रतन-जड़ा
जिसे
खोने के डर से,
आँख का लगना चुका सो चुका।
-0-

6-समय : चोर

समय
चुराकर
खिसक गया
क़ीमती सपनों की पिटारी
मन के सन्दूक से,

दीवानी ख़्वाहिशें
सिर धुनतीं,
बिलखतीं
बाल खोले
घूमती रहती हैं
उम्र के ख़ाली कमरों में
-0-
7-अनमनी शाम

अजनबी शाम
मेरी आँखों में
तुम्हारी याद का काजल
आँज,
सिरहाने
तुम्हारे गीतों का गंगाजल
रख,
दबे पाँव चली गई
कि
शायद
सो सकूँ थोड़ी देर ।

कोरा काजल किरकिराता रहा,
गीतों का जल
तकिया भिगोता रहा,
न पूछो
कैसे कटी रात ।
-0-
8-तपिश और आग””

दिल के आतिशदान में
चटखती यादो !
तपिश तो ठीक है, सही जाएगी।
उफ़ ! आग ऐसी !
मत बनों बेरहम इतनी
मेरी तो दुनिया जल ही जाएगी !
-0-
9-सफ़र

सफ़र:
एक ओर ऊँची चट्टानें
दूसरी ओर
भयंकर खाइयाँ।
दूर-दूर तक ख़ौफ़नाक अँधेरे
और डरावनी परछाइयाँ।
कितना झिड़का था
तुम्हें मन !
मत चलो मेरे साथ !!
-0-

मेरी नगरी में आकर तो

मेरी नगरी में आकर तो
कोमल भी पत्थर बन जाता ।
मैं किसका अपराध कहूँ यह
तुम्हें दोष क्यों दूँ मैं साथी
मेरी दुनिया में आकर तो
पावस का पहला बादल भी
प्रलय-मेघ बन विष बरसाता ।
आशा आती पर क्षण भर को
मुसका, वह विलीन हो जाती
इस नगरी की रीत यही है
सन्ध्या का आशामय तारा
धूमकेतु बनकर रह जाता ।
क्या तुम सुनना चाहोगे प्रिय
मेरी करुणा-भरी कहानी ?
कथा यहीं तक बस सीमित है
स्वाति-बूँद का जल आकर भी
कुलिश कठोर बना रह जाता ।

 

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