रति सक्सेना की रचनाएँ
ढ़हते दरख्त दरख्तों को ढहना पसन्द नहीं वे उठते हैं ऊँचे फैलाव के साथ वे फैलते हैं पूरे फैलाव में वे पाँव पसारते हैं पूरी… Read More »रति सक्सेना की रचनाएँ
ढ़हते दरख्त दरख्तों को ढहना पसन्द नहीं वे उठते हैं ऊँचे फैलाव के साथ वे फैलते हैं पूरे फैलाव में वे पाँव पसारते हैं पूरी… Read More »रति सक्सेना की रचनाएँ
शोर मचाते हम हंडा-बंडा, मुर्गी अंडा गली-गली में गिल्ली-डंडा शोर मचाते हम! मार-मार डंडे से गिल्ली सैर कराते, उसको दिल्ली धूम मचाते हम! इंशाअल्ला, करके… Read More »रतनसिंह किरमोलिया की रचनाएँ
अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात अहले-गुलशन को कहां मालूम वीराने की बात।… Read More »रतन पंडोरवी की रचनाएँ
. अभी तो अभी तो शब्द सहेजने की कला अर्थ की चमक, ध्वनि का सौंदर्य पंक्तियों में उनकी सही समुचित जगह अष्टावक्र व्याकरण की दुरूह… Read More »रणेन्द्र की रचनाएँअभी तो
भाषा एक भाषा प्रेम के, सबकेॅ मिलावै छै ई सबकेॅ बुझावै छै । एक भाषा सहयोग के, सबके काम आवै छै ई सबकेॅ बुझावै छै… Read More »रणविजय सिंह सत्यकेतु की रचनाएँ
जूझती प्रतिमा नहीं रहा मैं अपने पथ पर आज अकेला क्योंकि तुम्हारी भी आँखों में कल के विकल स्वप्न जागे हैं तुमने भी निर्मम होकर,… Read More »रणजीत की रचनाएँ
फ़िक्रे-अज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए फ़िक्रे-आज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए। दिल से दिल तक बर्क़े-खुद्दारी को जौलाँ कीजिए॥ दामने-गुल में फ़रोज़ां कीजिए आतश-कदा। आग के… Read More »रज़्म रदौलवी की रचनाएँ
ख़याल-ए-हुस्न में यूँ ज़िंदगी तमाम हुई ख़याल-ए-हुस्न में यूँ ज़िंदगी तमाम हुई हसीन सुब्ह हुई और हसीन शाम हुई बक़ार-ए-इश्क़ बस अब सर झुका दे… Read More »रज़ा लखनवी की रचनाएँ
ज़रा सी मश्क़ करे बे-ज़मीर बन जाए ज़रा सी मश्क़ करे बे-ज़मीर बन जाए तो क्या अजब है कि इंसाँ वज़ीर बन जाए जो काम-चोर… Read More »रज़मी सिद्दीक़ी की रचनाएँ
अभी से मत कहो दिल का ख़लल जावे तो बेहतर है अभी से मत कहो दिल का ख़लल जावे तो बेहतर है ये राह-ए-इश्क़ है… Read More »रजब अली बेग ‘सुरूर’की रचनाएँ