किशोर कल्पनाकांत की रचनाएँ
पलक झपकता गया कठीने ? औस तणा नैनाकिया मोती, पसरयोडा हा इतरी ताळ! पलक झपकाता गया कठीने, करूँ औस री ढूंढा-भाळ? आभै तणी कूख सूं… Read More »किशोर कल्पनाकांत की रचनाएँ
पलक झपकता गया कठीने ? औस तणा नैनाकिया मोती, पसरयोडा हा इतरी ताळ! पलक झपकाता गया कठीने, करूँ औस री ढूंढा-भाळ? आभै तणी कूख सूं… Read More »किशोर कल्पनाकांत की रचनाएँ
कि जैसे हो महाराजे ई ससुरी रोटी-दाल तेल तरकारी चीनी चावल, रोज़ी निकली खोटी भक्ति के आगे दुम दबा कर विकास है भागे भई वाह !… Read More »शैलेन्द्र शान्त की रचनाएँ
सावन के झूले यादों में शेष रहे सावन के झूले गाँव-गाँव फैल गई शहरों की धूल छुईमुई पुरवा पर हँसते बबूल रह-रहके सूरज तरेरता है… Read More »शैलेन्द्र शर्मा की रचनाएँ
गीत कवि की व्यथा १ ओ लेखनी विश्राम कर अब और यात्रायें नहीं मंगल कलश पर काव्य के अब शब्द के स्वस्तिक न रच अक्षम… Read More »किशन सरोज की रचनाएँ
पेड़ होने का मतलब समझते हैं लोग क्या पेड़ से होने से,उसके न होने से पेड़ का मतलब छाया, हवा,लकड़ी, हरियाली पेड़ जब सनसनाते सन्नाटे… Read More »शैलेन्द्र चौहान की रचनाएँ
बूढा बरगद का पेड़ बोला मेरी ही टहनियों को काटकर छाँव की तलाश में भटक रहे लोग कराहते हुए कहीं यहीं पर जैसे बूढा बरगद… Read More »किशन कारीगर की रचनाएँ
मेरा बचपन जहाँ खेतो में उगते है गीत साँझा चूल्हे में पकते है गीत वही कहीं किसी गीत के साथ देखना पेड़ पर पहन कर… Read More »किरण मिश्रा की रचनाएँ
विविधता पौधों की तरह लोगों की भी कई किस्में हैं कई नस्लें हैं कुछ लोग गुलाब की तरह सदा मुस्कुराते हुए कुछ रजनीगंधा की तरह… Read More »किरण मल्होत्रा की रचनाएँ
रोबोट और एक दिन नींद खुलेगी हमारी और हम पाएँगे कि आसमान नहीं है हमारे सिर के ऊपर कि प्रयोगशालाओं के भीतर से निकलता है… Read More »किरण अग्रवाल की रचनाएँ
रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख, तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै। करन को… Read More »कालीदास की रचनाएँ