Skip to content

ओम जय जगदीश हरे

(1)
ॐ जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट
दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे

(2)
जो ध्यावे फल पावे
दुख बिनसे मन का
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्मति घर आवे
सुख सम्मति घर आवे
कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे

(3)
मात-पिता तुम मेरे
शरण गहूं मैं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा
प्रभु बिन और न दूजा
आस करूं मैं जिसकी
ॐ जय जगदीश हरे

(4)
तुम पूरण परमात्मा
तुम अंतरयामी
स्वामी तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर
पारब्रह्म परमेश्वर
तुम सब के स्वामी
ॐ जय जगदीश हरे

(5)
तुम करुणा के सागर
तुम पालनकर्ता
स्वामी तुम पालनकर्ता
मैं मूरख खल कामी
मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भर्ता
ॐ जय जगदीश हरे

(6)
तुम हो एक अगोचर
सबके प्राणपति
स्वामी सबके प्राणपति
किस विध मिलूं दयामय
किस विध मिलूं दयामय
तुमको मैं कुमति
ॐ जय जगदीश हरे

(7)
दीनबंधु दुखहर्ता
ठाकुर तुम मेरे
स्वामी तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ
अपनी शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे
ॐ जय जगदीश हरे

(8)
विषय विकार मिटाओ
पाप हरो देवा
स्वमी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ
संतन की सेवा
ॐ जय जगदीश हरे

सिखां दे राज दी विथिया

श्रद्धा राम फिल्‍लौरी / पं. श्रध्दाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ ‘ पुस्तक लिखी । अपनी पहली ही किताब ‘सिखों दे राज दी विथिया’ से वे पंजाबी साहित्य के पितृपुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इस पुस्तक मे सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया गया था। पुस्तक में तीन अध्याय है। इसके अंतिम अध्याय में पंजाब की संकृति, लोक परंपराओं, लोक संगीत आदि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published.