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बलजीत सिंह मुन्तज़िर

बलजीत सिंह मुन्तज़िर की रचनाएँ

ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र हो गए ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र[1] हो गए । बे-सरोसामाँ[2] तो थे ही, अब तो बेघर हो गए । तुमसे मिलने… Read More »बलजीत सिंह मुन्तज़िर की रचनाएँ