शेष दिल ही जानता है
आप सबके पूछने पर, कह दिया आनंद में हूँ,
शेष दिल ही जानता है।
क्या कहें कितनी विषम हैं,
नित्य-प्रति की परिस्थितियां।
युद्ध लड़ता हूँ स्वयं से,
जी रहा हूँ विसंगतियां।
आप सबसे मुस्कुराकर, कह दिया आनंद में हूँ,
शेष दिल ही जानता है।
मुश्किलों में देख सबने,
कर लिया मुझसे किनारा।
लाख रोका, रुक न पाया,
बँट गया आँगन हमारा।
मामला निपटा बताकर, कह दिया आनंद में हूँ।
शेष दिल ही जानता है।
हल नहीं जिन उलझनों का,
टाल देना ही भला है।
दर्द सहकर मुस्कुराना,
है कठिन, लेकिन कला है।
दर्द सब अपने भुलाकर, कह दिया आनंद में हूँ।
शेष दिल ही जानता है।
बासंती ऋतु आई
मौसम ने अंगड़ाई ली है
बासंती ऋतु आई।
पीली चूनर ओढ़ खेत में
सरसों है लहराई।
फर फर करती उड़ी पतंगें
लो काटा वो काटा।
सर्दी वाले मौसम का अब
दूर हुआ सन्नाटा।
छत पर होती धमाचौकड़ी
बच्चों की बन आई।
बाग बगीचे फूल खिले हैं
खुशबू रंग लुटाते।
महक उठी है आम्रमंजरी
गुन गुन भँवरे गाते।
बच्चे कुहुक चिढ़ाते हैं जब
तब कोयल शरमाई।
फगुनाहट से गमक उठा है
यौवन का मधुप्याला।
अपने अपने चितचोरों को
खोजे हर मधुबाला।
कामदेव के बाणों से है
घायल हर तरुणाई।
काम पर आया नहीं सूरज
सर्द मौसम
काम पर आया नहीं सूरज,
और दफ़्तर पर जड़ा है
धुँध का ताला।
कोहरे की श्वेत चादर
ओढ़कर बैठे,
दूर तक फैले हुए पर्वत
सुबह से ही।
है कहाँ बैठा दुबककर
बज रहे दस,
शीत पहने तक रहे सब
राह सूरज की।
और सूरज सोचता
ले लूँ बची सीएल,
इस दिसम्बर कट रहा है
किस क़दर पाला।
बंद हैं इस्कूल
बच्चे हैं रजाई में,
है बिठाया जा रहा
घर में जबरदस्ती।
दफ्तरों में बाबुओं को
लग रही सर्दी,
चाय की दूकान पर
चलती मटरगश्ती।
और ऐसी ठंड में
गंगा नदी का तट,
नग्न बैठे साधु जपते
राम की माला।
शीत क्या बरसात क्या
गर्मी रहे कुछ भी,
हम सभी को काम पर
जाना जरूरी है।
हूटरों पर कट रही है
ज़िन्दगी अपनी,
और फिर पैसा कमाना
भी जरूरी है।
सूझता कुछ भी नहीं
इतना घना कुहरा,
काम पर जाना मगर
जाता नहीं टाला।
खुद भी हुए मशीन
कलयुग यानी पुर्जों का युग
हम सब तेरह-तीन।
बीच मशीनों के रहकर हम
खुद भी हुए मशीन।
सुबह-सुबह उठकर बिस्तर से
रेडी होकर निकले घर से
नहीं देखते इधर-उधर हम
सिर्फ लेट होने के डर से
बस स्मार्ट-कार्ड छूकर ही
घड़ियाँ करें यकीन।
जिस मशीन के हैं लायक हम
उस मशीन के संचालक हम
नीटिंग स्वीन्ग वार्पिंग प्रेसिंग
या कंप्यूटर के चालक हम
कठपुतली से रहे नियंत्रित
खुश हों या गमगीन।
दिन भर दिखें वही कुछ चेहरे
आँखों में सन्नाटे गहरे
पत्नी बच्चों की निगाह में
हम तो सिर्फ एटीएम ठहरे
जीवन लगता नहीं ज़रा भी
मीठा या नमकीन।
आज शाम जब बरसा सावन
आज शाम जब बरसा सावन,
भीगा अपना तन-मन सारा।
भ्रान्ति लिए बैठा हूँ अब तक,
सावन था या प्यार तुम्हारा।
कान्हा ने राधा से पूछा,
तुम मुझको सच-सच बतलाना।
भली लगी कब तुम्हें बांसुरी,
और अधर तक उसका आना।
भीगे हम भी भीगे तुम भी,
शायद था सौभाग्य हमारा।
कह देने से कम हो जाता,
दुविधा में क्यों जीते-मरते।
तुम्हीं कहो उन सुखद पलों का,
मूल्यांकन हम कैसे करते।
मनः पटल पर स्पर्शों का,
बार-बार ही चित्र उतारा।
क्या जाने फिर कब बरसेगा,
दूर हुए तो मन तरसेगा।
दिल की बात कहेंगे किससे,
दिल का क्या यह तो धड़केगा।
जितना जो कुछ मिला भाग्य से,
हमने तुमने है स्वीकारा।
रस्मे दुनियाँ लग रही है भार अब
रस्मे दुनियाँ लग रही है भार अब।
बोझ से लगने लगे त्यौहार अब।
जब मिले टिपिया लिया कुश्ती लड़े,
औपचारिक हो गए हैं यार अब।
थे कभी ननिहाल भी ददिहाल भी,
सिर्फ पत्नी रह गई परिवार अब।
पास बच्चे भी नहीं हैं बैठते,
ऑनलाइन है सभी का प्यार अब।
खेलते थे साथ में भाई बहन,
‘ज्ञान’ मिलना हो गया व्यवहार अब।
तरस बेवफा पर न खाएंगे हम
तरस बेवफा पर न खाएंगे हम।
तुम्हें आज से भूल जाएंगे हम।
हुआ सो हुआ ख़त्म कर दो यहीं,
किसी को नहीं कुछ बताएंगे हम।
बहुत बार समझा चुके हैं तुम्हें,
लगातार धोखे न खाएंगे हम।
सुनो बात मेरी बड़े गौर से,
तुम्हें तो नहीं अब बुलाएंगे हम।
निकल ‘ज्ञान’ लो तुम बड़े शौक से,
न नखरे तुम्हारे उठाएंगे हम।
‘ज्ञान’ क्या ले गए और क्या दे गए
‘ज्ञान’ क्या ले गए और क्या दे गए।
दर्दो गम का हमें सिलसिला दे गए।
कह रहे थे रहेंगे सदा आपके,
वक़्ते मुश्किल में लेकिन दगा दे गए।
ख़्वाब में भी कभी सोच पाए न हम,
जिस तरह का हमें फासला दे गए।
ख़ास या आम पर यूँ न करना यकीं,
इस तरह का हमें मशविरा दे गए।
प्यार की शीशियों में भरा ज़ह्र था,
‘ज्ञान’ को मुस्कुराकर दवा दे गए।
याद उस रात की दिल से न मिटाई जाए
याद उस रात की दिल से न मिटाई जाए।
वो मुलाक़ात तो हमसे न भुलाई जाए।
क्या मिली खूब नज़र होश गँवा हम बैठे,
तबसे ख़्वाहिश है कि नज़रों से पिलाई जाए।
मुल्क़ में चैन अमन को ये जरूरी है अब,
नौजवानों को सही राह दिखाई जाए।
कामियाबी न मिले ये तो नहीं हो सकता,
काम को काम समझ लौ तो लगाई जाए।
हाथ पर हाथ धरे से न मिलेगा कुछ भी,
ये जरूरी है कि ज़हमत तो उठाई जाए।
फ़र्ज़, अहसास, वफ़ा और मुहब्बत लेकर,
‘ज्ञान’ दुनियाँ ही कहीं और बसाई जाए।
शख़्स इस वक़्त जो सफ़र पर है
शख़्स इस वक़्त जो सफ़र पर है।
दिल तो दरअस्ल उसका घर पर है।
बाल-बच्चे हैं और बीवी भी,
फ़िक्र सबकी हमारे सर पर है।
उन परिंदों का कुछ ख़याल करो,
जिनका घर बार इस शज़र पर है।
कामियाबी उसे मिले कैसे,
पाँव जिसका ग़लत डगर पर है।
शौकिया तौर वो चला बैठा,
तीर तब से फंसा जिगर पर है।
बाज़ आएगा वो न आदत से,
जब नज़र ही किसी के ज़र पर है।
‘ज्ञान’ दहशतज़दा हुआ आलम,
ध्यान सबका बुरी खबर पर है।
आदमी सच की राह गर होगा
आदमी सच की राह गर होगा।
फिर किसी बात का न डर होगा।
बात जायज़ कहो सलीक़े से,
क्यों नहीं बात का असर होगा।
मौत से डर मुझे नहीं लगता,
फिर शुरू इक नया सफ़र होगा।
दूर मैंने किया उसे खुद से,
जाके रोया वो रात भर होगा।
चाहतें आज भी उसी की हैं,
‘ज्ञान’ वो भी न बेखबर होगा।
चाहेगा क्यूँ वो पड़ना किसी के बवाल में
चाहेगा क्यूँ वो पड़ना किसी के बवाल में।
जो शख़्स ख़ुद है उलझा हुआ अपने जाल में।
माँ बाप की दुआ से मिलेगा सुकूँने क़ल्ब,
कुछ वक़्त दीजिएगा अगर देखभाल में।
आवाम की खुशी व तरक्क़ी के वास्ते,
आते हैं हाथ जोड़ के हर पांच साल में।
आ ही नहीं रहा है वो हरक़त से बाज़ जब,
तगड़ा जवाब दीजिए उसको हर हाल में।
ऐसा करो न काम कि बदनामियाँ मिलें,
हो काम वो कि नाम लिखा हो मिसाल में।
होली है ‘ज्ञान’ आज लगो प्यार से गले,
आओ मलें मिला के मुहब्बत गुलाल में।
कसम से आज मेरे साथ वो कमाल हुआ
कसम से आज मेरे साथ वो कमाल हुआ।
तुम्हारे प्यार की खुश्बू से मालामाल हुआ।
उछालकर के जो पत्थर शरारती भागा,
जरा सी बात पे कितना बड़ा बवाल हुआ।
न अपने वोट की क़ीमत समझ सके हम तुम,
तभी तो खेल यहाँ पूरे पांच साल हुआ।
तुम्हें तो शौक़ था खा पी के चल निकलने का,
तुम्हें पता भी है जीना मेरा मुहाल हुआ।
नहीं था ठीक तभी साथ उसका छोड़ दिया,
न ‘ज्ञान’ आज तलक फिर कोई मलाल हुआ।
कह दिया है मुख़्तसर में
कह दिया है मुख़्तसर में।
अब अकेला हूँ सफ़र में।
हादसे ही हादसे हैं,
आजकल की हर ख़बर में।
फेर लीं उसने निग़ाहें,
मिल गया जब भी डगर में।
छोड़िए, वह गिर चुका है,
खुद ब खुद अपनी नज़र में।
सुन खबर अपनी गली की,
जा छिपे हैं लोग घर में।
साथ साया भी न देता,
‘ज्ञान’ तपती दोपहर में।
आपकी मतलबपरस्ती तो रही अपनी जगह
आपकी मतलबपरस्ती तो रही अपनी जगह।
और आदत भूल जाने की मेरी अपनी जगह।
चाहते हो गर रहें रिश्ते सलामत उम्र भर,
देनदारी हो बराबर दोस्ती अपनी जगह।
काम जो भी हो उसे तय वक़्त में पूरा करो,
और उसके बाद मस्ती दिल्लगी अपनी जगह।
ज़िन्दगी में हर तरह के लोग मिलते ही रहे,
फासला किससे रहा किससे निभी अपनी जगह।
‘ज्ञान’ कोशिश है रही मेरी हमेशा से यही,
कर भला होगा भला, नेकी बदी अपनी जगह।
न देना दोस्ती में दाँव, रिश्ता टूट जाता है
न देना दोस्ती में दाँव, रिश्ता टूट जाता है।
तभी देखा गया, अच्छे से अच्छा टूट जाता है।
किसी का दिल हुआ या आइना रखना हिफाज़त से,
कहीं पर चूकना मत दोस्त, वरना टूट जाता है।
घिरा है दोस्तों से वो कि जब तक पास है पैसा,
वही फिर मुफ़लिसी में बेसहारा टूट जाता है।
हसीं सा ख़्वाब टूटा सोचते हैं फिर उसे देखें,
मगर फिर आँख खुलते ही वो सपना टूट जाता है।
कहा तो है गया नादान से मत दोस्ती करना,
भरोसे ‘ज्ञान’ उसके हो तो वादा टूट जाता है।
साकिया तू कमाल करता है
साकिया तू कमाल करता है।
ज़ाम देकर निढाल करता है।
चाहता काम टालना जब वो,
बेतुके से सवाल करता है।
इस तरह हल नहीं मिला करते,
बेवज़ह क्यों बवाल करता है।
वाह हाक़िम किया मुअत्त्तिल फिर,
नोट लेकर बहाल करता है।
काम आता नहीं परे हट जा,
किसलिए झोलझाल करता है।
है सुना बाद मयकशी वो तो,
शायरी बेमिसाल करता है।
‘ज्ञान’ ममनून हो गया उसका,
इस क़दर देखभाल करता है।
उनको नहीं है जब मेरे हालात का ख़याल
उनको नहीं है जब मेरे हालात का ख़याल।
आता नहीं है उनसे मुलाक़ात का ख़याल।
मेरी वज़ह से कोई भी तकलीफ में न हो,
रहता मुझे हमेशा ही इस बात का ख़याल।
जब जश्न घर में हो तो मने धूमधाम से,
रखिए पड़ोसियों के भी जज़्बात का ख़याल।
अपनी पे आ गए तो किया काम मन लगा,
दिन का रहा ख़याल न तब रात का ख़याल।
इस ज़िन्दगी को खेलिए शतरंज की तरह,
रहता नहीं है ‘ज्ञान’ को शै मात का ख़याल।
दिल जो न कह सका उसे आँखों ने कह दिया
दिल जो न कह सका उसे आँखों ने कह दिया।
दिन की थकन को चुपके से रातों ने कह दिया।
तू तोड़ तो रहा है मुझे किर्च किर्च कर,
मेरी चुभन को याद कर शीशों ने कह दिया।
कलियों को डर था लोग मसल दें न आज ही,
बेफिक्र होके झूम ये काँटों ने कह दिया।
थे तो चले वो राज़े मुहब्बत को छिपाने,
उनकी हरेक बात को नज़रों ने कह दिया।
है ‘ज्ञान’ चमत्कार कि बहरों ने सब सुना,
अंधों ने देखभाल की गूंगों ने कह दिया।