कल फूल के महकने की आवाज़ जब सुनी
कल फूल के महकने की आवाज़ जब सुनी
परबत का सीना चीर के नदी उछल पड़ी
मुझ को अकेला छोड़ के तू तो चली गई
महसूस हो रही है मुझे अब मेरी कमी
कुर्सी, पलंग, मेज़, क़ल्म और चांदनी
तेरे बग़ैर रात हर एक शय उदास थी
सूरज के इन्तेक़ाम की ख़ूनी तरंग में
यह सुबह जाने कितने सितारों को खा गई
आती हैं उसको देखने मौजें कुशां कुशां
साहिल पे बाल खोले नहाती है चांदनी
दरया की तह में शीश नगर है बसा हुआ
रहती है इसमे एक धनक-रंग जल परी
बदन पर नई फ़स्ल आने लगी
बदन पर नई फ़स्ल आने लगी
हवा दिल में ख़्वाहिश जगाने लगी
कोई ख़ुदकुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
जो चुपचाप रहती थी दीवार में
वो तस्वीर बातें बनाने लगी
ख़यालों के तरीक खंडरात में
ख़मोशी ग़ज़ल गुनगुनाने लगी
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
किताबों से बाहर निकालो अलिफ़
किताबों से बाहर निकालो अलिफ़
बरहना बदन पर चला लो अलिफ़
खुले पर उफ़क़ फड़फड़ा लो अलिफ़
कबूतर के पिंजरे में पालो अलिफ़
हमेशा वफ़ादार ही पाओगे
किसी वक़्त भी आज़मा लो अलिफ़
लगा कर लहू मीम का नून में
शहीदों में शामिल करा लो अलिफ़
मिरी जान मौसम बहुत सर्द है
लिहाफ़ों के अन्दर छुपा लो अलिफ़
संवर जायेगी हर्फ़ की अंजुमन
ज़रा आगे-पीछे लगा लो अलिफ़
बदन-मिट्टी ज़रखेज़ है साहिबो
जहां जी में आये लगा लो अलिफ़
ख़ाहिश की ख़ुनक ख़न्दक़ें गहराई बड़ी शीन
ख़ाहिश की ख़ुनक ख़न्दक़ें गहराई बड़ी शीन
लज़्ज़त का लहू सोख के लहराई बड़ी शीन
छत चांदनी शब-शोलगी तन्हाई बड़ी शीन
देखा जो अलिफ़ सामने घबराई बड़ी शीन
उतरे हुए कपड़ों पे चढ़े चांद का जादू
आईने में मुंह देख के शरमाई बड़ी शीन
अंगुश्त रखी नुक़्ते पे जब मीम ने ‘आदिल’
डोई की तरफ़ देख के इतराई बड़ी शीन
है गली में आख़िरी घर लाम का
है गली में आख़िरी घर लाम का
तीसवां आता है नंबर लाम का
डूबना निर्वाण की मंज़िल समझ
पानी के नीचे है गौहर लाम का
बंद दरवाज़ों पे सबके कान थे
शोर था कमरे के अंदर लाम का
देखते हैं हर्फ़ काग़ज़ फाड़ कर
मीम की गर्दन में ख़ंजर लाम का
भर गया है ख़ूने-फ़ासिद जिस्म में
आप भी नश्तर लगायें लाम का
चे चमक चेहरे पे बाक़ी है अभी
है मज़ा मुंह में मगर कुछ लाम का
काफ़ की कुर्सी पे काली चांदनी
गाफ़ में गिरता समंदर लाम का
शहर में अपने भी दुश्मन हैं बहुत
जेब में रखते हैं पत्थर लाम का
नून नुक़्ता नक़्द लो इनआम में
काट कर लाओ कोई सर लाम का
अलिफ़ सैर करने गया नून में
अलिफ़ सैर करने गया नून में
मिले मीम के नक़्शे-पा नून में
वो लज़्ज़त का सूरज ढला नून में
अंधेरा सा फिर हो गया नून में
वो नुक़्ता जो था बे के नीचे अभी
सरकता हुआ आ गया नून में
उसे सब ने रोक था जाते हुए
किसी की न मानी गया नून में
वहां जा के वापस न लौटा कभी
सदा के लिये रह गया नून में
वो ऊपर से गिनिये तो है बीसवां
वो नीचे से निकला छटा नून में
किसी हर्फ़ से भी न पूरा हुआ
अधूरा रहा दायरा नून में