ख़्वाब का दर बंद है
मेरे लिए रात ने
आज फ़राहम किया
एक नया मर्हला ।
नींदों ने ख़ाली किया
अश्कों से फ़िर भर दिया
कासा: मेरी आँख का
और कहा कान में
मैंने हर एक जुर्म से
तुमको बरी कर दिया
मैंने सदा के लिए
तुमको रिहा कर दिया
जाओ जिधर चाहो तुम
जागो कि सो जाओ तुम
ख़्वाब का दर बंद है
मुग़्नी तबस्सुम के लिए’
ऎ अज़ीज़ अज़ जान मुग़्नी
तेरी परछाई हूँ लेकिन कितना इतराता हूँ मैं
आज़मी का मरना
नज्मा का बिछड़ना
तेरे बल-बूते पर यह सब सह गया
भूल कर भी यह ख़याल आया नहीं मुझको
कि तन्हा रह गया
तेरी उल्फ़त में अजब जादू-असर है
तेरी परछाईं रहूँ जब तक जियूँ
यह चाहता हूँ
ऎ ख़ुदा!
छोटी-सी कितनी बेज़रर यह आरज़ू है
आरज़ू यह मैंने की है
इस भरोसे पर कि तू है।
दिल में तूफ़ान है और आँखों में तुग़यानी है
दिल में तूफ़ान है और आँखों में तुग़यानी है
ज़िन्दगी हमने मगर हार नहीं मानी है।
ग़मज़दा वो भी हैं दुश्वार है मरना जिन को
वो भी शाकी हैं जिन्हें जीने की आसानी है।
दूर तक रेत का तपता हुआ सहरा था जहाँ
प्यास का किसकी करश्मा है वहाँ पानी है।
जुस्तजू तेरे अलावा भी किसी की है हमें
जैसे दुनिया में कहीं कोई तेरा सानी है।
इस नतीजे पर पहुँचते हैं सभी आख़िर में
हासिले-सैरे-जहाँ कुछ नहीं हैरानी है।
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
रिश्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है।
कल यूँ था कि ये क़ैदे-ज़्मानी से थे बेज़ार
फ़ुर्सत जिन्हें अब सैरे-मकानी से नहीं है।
चाहा तो यकीं आए न सच्चाई पे इसकी
ख़ाइफ़ कोई गुल अहदे-खिज़ानी से नहीं है।
दोहराता नहीं मैं भी गए लोगों की बातें
इस दौर को निस्बत भी कहानी से नहीं है।
कहते हैं मेरे हक़ में सुख़नफ़ह्म बस इतना
शे’रों में जो ख़ूबी है मआनी से नहीं है।
जो बुरा था कभी अब हो गया अच्छा कैसे
जो बुरा था कभी अब हो गया अच्छा कैसे
वक़्त के साथ मैं इस तेज़ी से बदला कैसे।
जिनको वह्शत से इलाक़ा नहीं वे क्या जानें
बेकराँ दश्त मेरे हिस्से में आया कैसे।
कोई इक-आध सबब होता तो बतला देता
प्यास से टूट गया पानी का रिश्ता कैसे।
हाफ़िज़े में मेरे बस एक खंडहर-सा कुछ है
मैं बनाऊँ तो किसी शह्र का नक़्शा कैसे।
बारहा पूछना चाहा कभी हिम्मत न हुई
दोस्तो रास तुम्हें आई यह दुनिया कैसे।
ज़िन्दगी में कभी एक पल ही सही ग़ौर करो
ख़त्म हो जाता है जीने का तमाशा कैसे।
तमाम शह्र में जिस अजनबी का चर्चा है
तमाम शह्र में जिस अजनबी का चर्चा है
सभी की राय है, वह शख़्स मेरे जैसा है।
बुलावे आते हैं कितने दिनों से सहरा के
मैं कल ये लोगों से पूछूंगा किस को जाना है।
कभी ख़याल ये आता है खेल ख़त्म हुआ
कभी गुमान गुज़रता है एक वक़्फ़ा है।
सुना है तर्के-जुनूँ तक पहुँच गए हैं लोग
ये काम अच्छा नहीं पर मआल अच्छा है।
ये चल-चलावे के लम्हे हैं, अब तो सच बोलो
जहाँ ने तुम को कि तुम ने जहाँ को बदला है।
पलट के पीछे नहीं देखता हूँ ख़ौफ़ से मैं
कि संग होते हुए दोस्तों को देखा है।
जो कहते हैं कहीं दरिया नहीं है
जो कहते हैं कहीं दरिया नहीं है
सुना उन से कोई प्यासा नहीं है।
दिया लेकर वहाँ हम जा रहे हैं
जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं है।
न जाने क्यों हमें लगता है ऎसा
ज़मीं पर आसमाँ साया नहीं है।
थकन महसूस हो रुक जाना चाहें
सफ़र में मोड़ वह आया नहीं है।
चलो आँखों में फिर से नींद बोएँ
कि मुद्दत से उसे देखा नहीं है।
तेरे आने की ख़बर आते ही डर लगने लगा
तेरे आने की ख़बर आते ही डर लगने लगा
ग़ैर का लगता था जो वह अपना घर लगने लगा
क्या हरीफों में मेरे सूरज भी शामिल हो गया
ज़र्द से सन्नाटे का मजमा बाम पर लगने लगा
याद आना था किसी इक ख़्वाब आंखें करबला
जो जुदा तन से हुआ वो मेरा सर लगने लगा
जाने क्या उफ्ताद पड़ने को है मुझ पर दोस्तो
मोतबर लोगों को अब मैं मोतबर लगने लगा।
तुमको मुबारक शामिल होना बंजारों में
तुमको मुबारक शामिल होना बंजारों में
बस्ती की इज़्ज़त न डुबोना बंजारों में
उनके लिए ये दुनिया एक अजायब घर है
हिर्सो-हवस के बीज न बोना बंजारों में
अपनी उदासी अपने साथ में मत ले जाना
ना-मक़बूल है रोना धोना बंजारों में
उनके यहां ये रात और दिन का फ़र्क़ नहीं है
उनकी आंख से जागना सोना बंजारों में
यकसां और मसावी हिस्सा सबको देना
जो कुछ भी तुम पाना खोना बंजारों में
हिजरत की ख़ुशबू से उनकी रूह बंधी है
हिजरत से बेज़ार न होना बंजारों में।
जाने क्या देखा था मैंने ख़्वाब में
जाने क्या देखा था मैंने ख़्वाब में
फंस गया फिर जिस्म के गिरदाब में
तेरा क्या तू तो बरस के खुल गया
मेरा सब कुछ बह गया सैलाब में
मेरी आंखों का भी हिस्सा है बहुत
तेरे इस चेहरे की आबो-ताब में
तुझ में और मुझ में तअल्लुक है वही
है जो रिश्ता साज़ और मिज़राब में
मेरा वादा है कि सारी ज़िन्दगी
तुझ से मैं मिलता रहूंगा ख़्वाब में।
मैंने जिसको कभी भुलाया नहीं
मैंने जिसको कभी भुलाया नहीं
याद करने पे याद आया नहीं
अक्से-महताब से मुशाबह है
तेरा चेहरा तुझे बताया नहीं
तेरा उजला बदन न मेला हो
हाथ तुझ को कभी लगाया नहीं
ज़द में सरगोशियों की फिर तू है
ये न कहना तुझे जगाया है
बा-ख़बर मैं हूँ तू भी जानता है
दूर तक अब सफ़र में साया नहीं।
कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ
कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ
कि आज धूप नहीं निकली आफ़ताब के साथ
तो फिर बताओ समंदर सदा को क्यूँ सुनते
हमारी प्यास का रिश्ता था जब सराब के साथ
बड़ी अजीब महक साथ ले के आई है
नसीम, रात बसर की किसी गुलाब के साथ
फ़िज़ा में दूर तक मरहबा के नारे हैं
गुज़रने वाले हैं कुछ लोग याँ से ख़्वाब के साथ
ज़मीन तेरी कशिश खींचती रही हमको
गए ज़रूर थे कुछ दूर माहताब के साथ
सुनो ख़ुश-बख़्त लोगो! लम्हए-नायाब आया है
सुनो ख़ुश-बख़्त लोगो! लम्हए-नायाब आया है
ज़मीं पर पैरहन पहने बिना महताब आया है।
बना सकता है तुममें कोई काग़ज़-नाव बतलाओ
सुना है शहर में, ऎ शहरियो सैलाब आया है।
जो मंज़र देखने वाली हैं आँखें रोने वाला है
जो मंज़र देखने वाली हैं आँखें रोने वाला है
कि फिर बंजर ज़मीं में बीज कोई बोने वाला है।
बहादुर लोग नादिम हो रहे हैं हैरती में हूँ
अजब दहशत-ख़बर है शहर खाली होने वाला है।
सबसे जुदा हूँ मैं भी, अलग तू भी सबसे है
सबसे जुदा हूँ मैं भी, अलग तू भी सबसे है
इस सच का एतराफ़ ज़माने को कब से है।
फिर लोग क्यों हमारा कहा मानते नहीं
सूरज को ख़ौफ़-सायए-दीवारे-शब से है।
दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं
दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं
वक़्त की बात है क्या होना था, क्या हो गया मैं।
दिल के दरवाज़े को वा रखने की आदत थी मुझे
याद आता नहीं कब किससे जुदा हो गया मैं।
कैसे तू सुनता बड़ा शोर था सन्नाटों का
दूर से आती हुई ऎसी सदा हो गया मैं।
क्या सबब इसका था, ख़ुद मुझ को भी मालूम नहीं
रात ख़ुश आ गई, और दिन से ख़फ़ा हो गया मैं।
भूले-बिसरे हुए लोगों में कशिश अब भी है
उनका ज़िक्र आया कि फिर नग़्मासरा हो गया मैं।
तेरी फितरत
क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा हो गयी हर गाँव हर गली !
मगर किसकी बदौलत ये जानती हूँ मैं !!
आँखों में दिए आँसू बेचारगी के !
तेरी फितरत अजब है पहचानती हूँ मैं !!
दिया है जिंदगी ने क्या खूब ये सिला !
मेरी अपनी है दौलत सहेजती हूँ मैं !!
अपने दामन को देख के स्याह हो गए हम !
क़त्ल के छीटें कहाँ गिरे है जानती हूँ मैं !!
चले क्यों है उनके अश्कों को पौछ्नें !
आँसू अपनी ही आँख में आंएगे ये जानती हूँ मैं !!
कदम-कदम पर साथ देती हैं तेरी रुसवाईयां !
तेरे नक्श हमें भी छोड़ जायेंगे ये मानती हूँ मैं !!
बदन के आस-पास
लबों पे रेत हाथों में गुलाब
और कानों में किसी नदी की काँपती सदा
ये सारी अजनबी फ़िज़ा
मेरे बदन के आस-पास आज कौन है।
नींद से आगे की मंज़िल
ख़्वाब कब टूटते हैं
आँखें किसी ख़ौफ़ की तारीकी से
क्यों चमक उठती हैं
दिल की धड़कन में तसलसुल बाक़ी नहीं रहता
ऎसी बातों को समझना नहीं आसान कोई
नींद से आगे की मंज़िल नहीं देखी तुमने।
ख़लीलुर्रहमान आज़मी की याद में
धूल में लिपटे चेहरे वाला
मेरा साया
किस मंज़िल, किस मोड़ पर बिछड़ा
ओस में भीगी यह पगडंडी
आगे जाकर मुड़ जाती है
कतबों की ख़ुशबू आती है
घर वापस जाने की ख़्वाहिश
दिल में पहले कब आती है
इस लम्हे की रंग-बिरंगी सब तस्वीरें
पहली बारिश में धुल जाएँ
मेरी आँखों में लम्बी रातें घुल जाएँ।
ख़्वाब को देखना कुछ बुरा तो नहीं
बर्फ़ की उजली पोशाक पहने हुए
इन पहाड़ों में वह ढूंढ़ना है मुझे
जिसका मैं मुन्तज़िर एक मुद्दत से हूँ
ऎसा लगता है, ऎसा हुआ तो नहीं
ख़्वाब को देखना कुछ बुरा तो नहीं।
सफ़र की इब्तिदा नए सिरे से हो
सफ़र की इब्तिदा नए सिरे से हो
कि आगे के तमाम मोड़ वह नहीं हैं
चींटियों ने हाथियों की सूँड में पनाह ली
थके-थके से लग रहे हो,
धुंध के ग़िलाफ़ में, उधर वह चांद रेगे-आसमान से
तुम्हें सदाएँ दे रहा है, सुन रहे हो
तुम्हारी याददाश्त का कोई वरक़ नहीं बचा
तो क्या हुआ
गुज़िश्ता रोज़ो-शब से आज मुख़्तलिफ़ है
आने वाला कल के इन्तज़ार का
सजाओ ख़्वाब आँख में
जलाओ फिर से आफ़ताब आँख में
सफ़र की इब्तिदा नए सिरे से हो।
ज़मीन से दूर
इस ख़ला से ज़मीं का हर गोशा
जितना दिलकश दिखाई देता है
उसने ख़्वाबों में भी नहीं देखा
वह नहीं आएगा ज़मीन पे अब।
सवारे-बेसमंद
ज़मीन जिससे छुट गई
बाब ज़िन्दगी का जिस पे बन्द है
वो जानता है यह कि वह सवारे-बेसमंद है
मगर वो क्या करे,
कि उसको आसमाँ को जाने वाला रास्ता पसन्द है
अज़ाब की लज़्ज़त
फिर रेत भरे दस्ताने पहने बच्चों का
इक लम्बा जुलूस निकलते देखने वाले हो
आँखों को काली लम्बी रात से धो डालो
तुम ख़ुशक़िस्मत हो, ऎसे अज़ाब की लज़्ज़त
फिर तुम चक्खोगे।
सज़ा की ख़्वाहिश
मैंने तेरे जिस्म के होते
क्यों कुछ देखा
मुझको सज़ा इसकी दी जाए।
तसलसुल के साथ
वह, उधर सामने बबूल तले
इक परछाईं और इक साया
अपने जिस्मों को याद करते हैं
और सरगोशियों की ज़र्बों से
इक तसलसुल के साथ वज्द में हैं।
जो इन्सान था पहले कभी
शहर सारा ख़ौफ़ में डूबा हुआ है सुबह से
रतजगों के वास्ते मशहूर एक दीवाना शख़्स
अनसुनी, अनदेखी ख़बरें लाना जिसका काम है
उसका कहना है कि कल की रात कोई दो बजे
तेज़ यख़बस्ता हवा के शोर में
इक अजब दिलदोज़, सहमी-सी सदा थी हर तरफ़
यह किसी बुत की थी जो इन्सान था पहले कभी।
मेरे हाफ़िज़े मेरा साथ दे
किसी एक छत की मुंडेर पर
मुझे तक रहा है जो देर से
मेरे हाफ़िज़े मेरा साथ दे
ये जो धुन्ध-सी है ज़रा, हटा
कोई उसका मुझको सुराग़ दे
कि मैं उसको नाम से दूँ सदा।
रेंगने वाले लोग
चलते-चलते रेंगने वाले ये लोग
रेंगने में इनके वह दम-ख़म नहीम
ऎसा लगता है कि इनको ज़िल्लतें
मुस्तहक़ मेक़्दार से कुछ कम मिलीं
मैं डरता हूँ
मैं डरता हूँ,
मैं डरता हूँ, उन लम्हों से
उन आने वाले लम्हों से
जो मेरे दिल और उसके इक-इक गोशे में
बड़ी आज़ादी से ढूँढ़ेंगे
उन ख़्वाबों को, उन राज़ों को
जिन्हें मैंने छिपाकर रखा है इस दुनिया से।
उस उदास शाम तक
लज़्ज़तों की जुस्तजू में इतनी दूर आ गया हूँ
चाहूँ भी तो लौट के जा नहीं सकूंगा मैं
उस उदास शाम तक
जो मेरे इन्तज़ार में
रात से नहीं मिली।
देर तक बारिश होती
शाम को इंजीर के पत्तों के पीछे
एक सरगोशी बरहना पाँव
इतनी तेज़ दौड़ी
मेरा दम घुटने लगा
रेत जैसे ज़ायक़े वाली किसी मशरूब की ख़्वाहिश हुई
वह वहाँ कुछ दूर एक आंधी चली
फिर देर तक बारिश हुई।