दिल और तरह आज तो घबराया हुआ
दिल और तरह आज तो घबराया हुआ है
ऐ बे-ख़बरी चौंक कोई आया हुआ है
सुलगे हुए बोसे ये हवा के हैं फ़ना के
दिल ख़ौफ़ से हर फूल का थर्राया हुआ है
ता-के न निगाहों को अँधेरे नज़र आएँ
आईना उजालों ने ये चमकाया हुआ है
ऐ रात न फ़ाख़िर हो सितारों की चमक पर
वो चाँद भी तेरा है जो गहनाया हुआ है
दिल-गिरफ़्ता हूँ जहाँ-शाद हूँ मैं
दिल-गिरफ़्ता हूँ जहाँ-शाद हूँ मैं
एक मजमुआ-ए-अज़दाद हूँ मैं
तेरा मेरा है गुमाँ का रिश्ता
तू है मेरी तेरी ईजाद हूँ मैं
तुझ को ये ग़म के गिरफ़्तार है तू
मुझ को ये रंज के आज़ाद हूँ मैं
कोई रास्ता है न कोई मंज़िल
गर्द हूँ और सर-ए-बाद हूँ मैं
तन-ए-तन्हा का हूँ अपने नासिर
ख़ुद को पहुँची हुई इमदाद हूँ मैं
सिर्फ़ मैं अपनी कहानी ही नहीं
सुन मुझे तेरी भी रूदाद हूँ मैं
मेरे तामीर का मुझ पर है खड़ा
बहुत खोदी हुई बुनियाद हूँ मैं
जिन के ज़ेर-ए-नगीं सितारे हैं
जिन के ज़ेर-ए-नगीं सितारे हैं
कुछ सुना तुम ने वो हमारे हैं
उन के आँखों के वो किनारे दो
बे-करानी के इस्तिआरे हैं
आँसुओं को फ़ुज़ूल मत समझो
ये बड़े क़ीमती सहारे हैं
जो चमकते थे बाम-ए-गर्दूं पर
ख़ाक में आज वो सितारे हैं
गर्मी-ए-शौक़ ने तेरी ‘आसिफ़’
उन के रुख़्सार ओ लब निखारे हैं
साहिल-ए-इंतिज़ार में तन्हा
साहिल-ए-इंतिज़ार में तन्हा
याद वो लहर लहर आए मुझे
दश्त-ए-दीवानगी के टीलों पर
रक़्स करती हवा बुलाए मुझे
अजनबी मुझ से आ गले मिल ले
आज इक दोस्त याद आए मुझे
भूल बैठा हूँ मैं ज़माने को
अब ज़माना भी भूल जाए मुझे
इक घरौंदा हूँ रेत का पैहम
कोई ढाए मुझे बनाए मुझे
एक हर्फ़-ए-ग़लत हूँ हस्ती का
नीस्ती क्यूँ न फिर मिटाए मुझे
दफ़अतन मेरे रू-ब-रू आ कर
आईने में कोई डराए मुझे
आँधियाँ क्यूँ मेरी तलाश में हों
एक झोंका ही जब बुझाए मुझे
जैसे इक नक़्श-ए-ना-दुरुस्त को तिफ़्ल
कोई अंदर से यूँ मिटाए मुझे
राख अपनी उमंग की हूँ ‘रज़ा’
आ के झोंका कोई उड़ाए मुझे
सफ़ीना ग़र्क़ हुआ मेरा यूँ ख़ामोशी से
सफ़ीना ग़र्क़ हुआ मेरा यूँ ख़ामोशी से
के सतह-ए-आब पे कोई हबाब तक न उठा
समझ न इज्ज़ इसे तेरे पर्दा-दार थे हम
हमारा हाथ जो तेरे नक़ाब तक न उठा
झिंझोड़ते रहे घबरा के वो मुझे लेकिन
मैं अपनी नींद से यौम-ए-हिसाब तक न उठा
जतन तो ख़ूब किए उस ने टालने के मगर
मैं उस की बज़्म से उस के जवाब तक न उठा
ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है
ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है
तेरा मिलना भी मुझ को खल रहा है
जिसे मैं ने किया था बे-ख़ुदी में
जबीं पर अब वो सजदा जल रहा है
मुझे मत दो मुबारक-बाद-ए-हस्ती
किसी का है ये साया चल रहा है
सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से
बरसता दूर इक बादल रहा है
फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम
अभी तक हाथ यज़दाँ मल रहा है
दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है
जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है
ये मेरी बज़्म नहीं है लेकिन
ये मेरी बज़्म नहीं है लेकिन
दिल लगा है तो लगा रहने दो
जाने वालों की तरफ़ मत देखो
रंग-ए-महफ़िल को जमा रहने दो
एक मेला सा मेरे दिल के क़रीब
आरज़ूओं का लगा रहने दो
उन पे फाया न रक्खो मरहम का
मेरे ज़ख़्मों को हरा रहने दो
दोस्ताना है शिकस्ता जिस से
उस को सीने से लगा रहने दो
होश में है तो ज़माना सारा
मुझ को दीवाना बना रहने दो
जब चलो राह-ए-हक़ीक़त पे कोई
ख़्वाब आँखों में बसा रहने दो
दिल के पानी में उतारो महताब
इस प्याले को भरा रहने दो