अरुणा शानबाग का कमरा
क्या केवल एक पत्ता है
अरुणा शानबाग का कमरा
जो समय की हवा पाकर उड़ जाएगा
या कि भूल जाएँगी दीवारें उसकी
गूँगी नीली दर्द में डूबी चीत्कारें
किस नियम से बेधता रहा
काल ! पूरे बयालिस साल
कौन-सी है वह सत्ता
जो हुक़्म देती है
कि औरत होने के नाते
नर्स अरुणा चेन में बाँधी जाए
और तेज़ाबी लार गिराता कुत्ता
सड़क पर शान से टहलता रहे
क्या केवल मुठ्ठी भर रेत है
अरुणा शानबाग का कमरा
जिसे कोई लहर बहा ले जाएगी
क्या केवल कमरा भर है
अरुणा शानबाग का कमरा ?
उसकी आँखें
उसने फिर तोड़ा
भरोसा मेरा
हालाँकि वह पहले भी
कई बार तोड़ चुका था ।
वह कहता था
कुछ कहने की
ज़रूरत नहीं
मैं सब देख रहा हूँ ।
मैं भी सोचती थी
आँखे हैं उसके पास
तो देखता ही होगा ।
दरअसल मेरी
ख़ुद्दार ग़रीबी
खुली थी उसके आगे
पानी के लिए बिलबिला रही थी
जबकि कई तालाब थे उसके पास
मैं भी सोचती थी
पानी है तो जाएगा कहाँ
उसने फिर भरोसा दिया
वह शुरू से मेरा अपना है
पारदर्शी हैं नीतियाँ उसकी
रँग लाएँगी एक दिन
पानी के चश्मे बहेंगे
सब कुछ हरा-भरा हो जाएगा ।
सुनती रहती, इन्तज़ार था
और करती भी क्या
ग़रीबी के अलावा और भी चीज़ें थी मेरे पास
जिन्हें बचाने के चक्कर में
मैं और भी ग़रीब होती जा रही थी
वह बहुत व्यस्त रहता
एक दिन विश्व शान्ति की
बात करने के बाद
उसने मेरी ओर देखा
तब लगा अब ग़रीबी
इतिहास की बात हो जाएगी ।
उसने गम्भीरतापूर्वक कहा
सुनो ! कुछ ऐसा करो
यह सच्चाई उठाकर
कहीं और रख दो
निष्ठा को सम्भालो ज़रा
अपनी बेचैनी पर लगाम लगाओ
कुछ मनोरँजन पर ध्यान दो ।
अपनी जगह से हिलो
क्योंकि सुन्दरता के लिए
लचीला होना बहुत ज़रूरी है।
दूसरों को भी जगह दो
प्यार नहीं तो व्यापार ही सही
थोड़ा लालच लाओ अपने भीतर ।
अरे ! ग़रीबी की तो सोचो ही नहीं
वह तो मानसिक अवस्था का नाम है ।
बाकी सब मै देख रहा हूँ न !
और उसके देखने पर
भरोसा करना ही था
क्योंकि मैंने ही तो चुना था उसे
उसके अलावा उसके
तालाब की सारी मछलियाँ
शपथ ले रहीं थीं कि
थोड़ी शोशेबाजी है पर समझदार है
अचानक एक दिन
ख़बर मिली कि अपनी भी रक्षा
नहीं कर पाया वह और मारा गया ।
मैं तो परेशान रो-रो के बुरा हाल
कैसे तोड़ दूँ उसका मोह
आख़िर एक ही नज़र से देखता था सबको ।
लेकिन तब तो मैं और भी
सन्नाटे में आ गई थी
जब लोगों ने बताया
उसकी आँखें तो पत्थर की थीं ।
आदमख़ोर
उफनते दूध को सम्भालो
पशुओं का चारा-पानी जल्दी
छाती लगे बच्चों को उठाओ
आएगा, आता है आदमख़ोर ।
लार-सने दाँत चमकती आँखें
मारेगा झपट्टा शिकार पर
रक्त माँस का कतरा-कतरा
खाएगा, खाता है आदमख़ोर ।
मीठी बोली पर न जाना
अपने-पराए पर न जाना
वहीं कहीं तुम्हारे बीच बैठा
हँसेगा, हँसता है आदमख़ोर ।
हाशिए से उठ चलो, बढ़ चलो
शहर के बीचोबीच राजपथ पर
आवाज़ दो हम एक हैं . . .
डरेगा, डरता है आदमख़ोर ।
ख़ूनी हस्ताक्षर
आँधी पानी में लोग खड़े रहते
उसकी बात सुनते वह बहुत सुन्दर था
लाखों धड़कनों का हीरो
उसे नए कपड़ों में
अलग-अलग पोज में
आईने में अपने आप को
देखना बहुत पसन्द था
उसने कभी अपनी पत्नी को
धोखा नहीं दिया
अलग बात थी कि सुदूर देश में
उसकी प्रेमिका रहती थी
वह सिगरेट नहीं पीता था
वह शराब नहीं छूता था
वह माँस नहीं खाता था
वह बहुत अच्छा बोलता था
उसके पास हर समस्या का
समाधान रहता था
वह उद्धार गौरव उत्थान और
शान से जीने की बातें करता
वह दुश्मन को मज़ा चखाने
की भी बातें किया करता था
सब कुछ बहुत अच्छा था
बस एक ही बुराई थी कि
वह ज़िन्दगी में मौत और
मौत में ज़िन्दगी देखता था
वह इतिहास का ख़ूनी हस्ताक्षर
कोई था, कोई हो सकता है ।
बिलकिस बानो से
पतझड़ में केवल
पत्ते ही नहीं गिरते
गिरती है नफ़रत भी ।
पुरानी दीवारों से
केवल भित्तियाँ ही नहीं
झरती हैं साज़िशें भी
बुलन्दी से केवल
झाड़-फ़ानूस ही नहीं गिरते
गिरती हैं आस्थाएँ भी
इन सबमें डूब कर
इतिहास बदलता है
अपना रक्तरँजित पन्ना
सब कुछ भूलकर
एक सामान्य ज़िन्दगी
शुरू करना चाहती हो
बिलकिस, बिलकुल सही
यही कहना था मुझे तुमसे
कुनानपोशपुरा-कश्मीर की
मुस्लिम महिलाओं से भी
यही कहना था मुझे
कि अपमान कभी मत भूलना
दरकती दीवारों की भित्तियाँ
बताती हैं कि साज़िशों को सुनकर
दीवार छोड़ दिया था उन्होंने
पतझड़ की सूखी पत्तियाँ
बताती हैं कि किस तरह
की आग से सूख गई थीं वे
अपनी यातनाओं की बातें
ज़रूर बता देना और यह भी कि
कैसे चलीं थीं तुम काँच की किरचों पर
यह एक मुनासिब कार्रवाई है जो
चलती रहेगी इनके समानान्तर ।
डर
डर इनसान को
बचाता नहीं, भगाता है
कभी-कभी बड़ा डर
पीढ़ी-दर-पीढ़ी डराता है
जैसे दिए के बुझने का डर
या राज़ के खुलने का डर
वैसे जीवन भर ब्लैकमेल
होने से अच्छा है एक बार
लानत-मलामत सह लेना
चरित्र प्रमाणपत्र
असल ज़िन्दगी में नहीं
हलफ़नामे के काम आता है
डर वह करवा देता है
जो उसे नहीं करना चाहिए
डरता हुआ बच्चा झूला झूलता है
अचानक कूद जाता है झूले से
सिसकती लड़की ज़हर खाती है
नीम-अन्धेरे में शिशु को छोड़कर
डर इनसान को
बचाता नहीं, ग़ुलाम बनाता है
ग़ुलामों की तरह
मरने का मतलब
अगर धीरे-धीरे मरना है
तो डरने का मतलब भी
उनके हाथों मारा जाना ही होता है ।