प्रथमहिं सुमिरौ नाम विधाता
प्रथमहिं सुमिरौं नाम विधाता । जोविधि विधि किन्ह सकल रंगराता ।।
सात अकास किन्ह मैं गुनी । सरंग पताल रचे बिनु थुनी ।।
सातो दीप किन्ह गंभीरा । सात समुद्र किन्ह निरनीरा ।।
अंडज, पिण्डज, अंकुरज, किन्हा । ओ उखमज पुनि पैदा किन्हा ।।
जो चरचे पावे पुनि सोई । अलख रूप लखि पारे न कोई ।।
सरवन नहीं सुने चहुँ बाता । लोचन नाहि देखे सब गाता ।।
हृदय माहि बुझे मन ज्ञाना । कमल कली मँह भँवर छिपाना ।।
कमल फूल अस कैना पाई
कमल फूल अस कैना पाई । रूपभान कर बात सुनाई ।।
मुनी के रूप भई रंग राती । उपजा बिरह बेथा सब गाती ।।
रूपा तोहार सुना जब लोना । अस भई कोई डारे जस टोना ।।
केहि विधि पार गेआ वही सोई । जौ लगि ई अमिल बधे नहि कोई ।।
आदर मान बहुत मोर कीन्हा । ओ लोचन पंडित संग कीन्हा ।।
जब लोचन भौ साथ हमारा । तब देखल हम दरस तोहारा ।।
अब लोचन जाने और तुह राजा । अब है नहीं मोर कुछ काजा ।।