अम्बिन तैं अम्बर तैं
अम्बिन तैं अम्बर तैं, द्रुमनि दिगम्बर तैं
अपर अडंबर तैं, सखि सरसो परै।
कोकिल की कूकन तैं, हियन की कन तैं,
अतन भभूकन तैं, तन परसो परै॥
कहत ‘किसोर’, कंज पुंजन तैं, कुंजन तैं,
मंजु अलि गुंजन तैं, देखु दरसो परै।
बसन तैं, बासन तैं, सुमन सुबासन तैं,
बैहर तैं, बन तैं, बसंत बरसो परै॥
यह सौति सवादिन जा दिन तें
यह सौति सवादिन जा दिन तें, मुख सों मुख लायो हियो रसुरी।
निस द्यौस रहै न धरी सुघरी, सुनि कानन कान्हर की जसुरी॥
यक आपस बेधस बेध करै, असुरी दृग आनि ढरै अंसुरी।
अब तो न ‘किसोर’ कछू बसुरी, बंसुरी ब्रज बैरिनि तूं बसुरी॥
चहुं ओरन ज्योति जगावै
चहुं ओरन ज्योति जगावै, ‘किसोर’, जगी प्रभा जीवन-जूटी परै।
तेहिं तें झरि मानों अंगार अनी, अपनी घनी इंदुट-बधूटी परै॥
चहुं नाचै नटी सी, जराव जटी सी, प्रभा सों पटी सी, न खूटी परै।
अरी एरी हटापटी बिज्जु छटा, छटी छूटी घटान तें टूटी परै॥
फूलन दै अबै टेसू कदम्बन
फूलन दै अबै टेसू कदम्बन, अम्बन बौरन छावन दै री।
री मधुमत्त मधूकन पुंजन, कुंजन सोर मचावत दै री॥
क्यों सहिहै सुकुमारि ‘किसोर’ अरी कल कोकिल गावन दै री।
आवत ही बनिहै घर कंतहि, बीर बसंतहि आवन दै री॥