ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से
ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से,
आपको क्या मिला मिटाने से।
राहे-हक़ पर जो लोग चलते हैं,
ख़ौफ़ खाते नहीं ज़माने से।
हमको दिल का सुकून मिलता है,
फाका-मस्तों को कुछ खिलाने से।
बद्दुआ मत गरीब की लेना,
बाज रहना उसे सताने से।
बन के आते हैं कैसे कैसे लोग
ऐ खुदा तेरे कारखाने से।
मुस्कुराते रहो खुदा के लिए
फूल झड़ते हैं मुस्कुराने से।
उन से मिलती हूँ मैं अदब के साथ,
लोग मिलते हैं जब पुराने से।
कह के अच्छी ग़ज़ल भी ऐ शोभा
डरती हो किस लिए सुनाने से।
मत दिखा रोब तू नवाबी का
मत दिखा रोब तू नवाबी का
ये शहर है इक इंक़लाबी का।
शहर भर में है आज कल चर्चा
तेरी सूरत की लाजवाबी का।
गिर पड़े राह में न जाने कब
क्या भरोसा किसी शराबी का।
रच गई है नसों में अब रिश्वत
क्या मुदावा हो इस खराबी का।
हो गया काम सब का सब चौपट
ये नतीजा है सब शताबी का।
हर किसी से तपाक से मिलना
राज है अपनी कामियाबी का।
हार जाने का मत मन तू सोग
मत मना जश्न कामियाबी का।
आओ पूछें कभी बुजुर्गों से
क्या है भेद उनकी कामियाबी का।