ये दिन आए
ये दिन आए ।
धूप करूँ नीलाम
न कोई बोली बोले,
आस-पास सूना-सूना
सन्नाटा डोले,
हवा हाँक दे,
कोई नहीं तनिक पतियाए ।
रंग-बिरंगे फूलों का
बाज़ार लगाऊँ,
और शाम तक कुछ न
बेच पाऊँ, पछताऊँ
देखे दुनिया,
ताना मारे हँसी उड़ाए ।
अब गीतों के होठों-कंठों
बसी उदासी,
सपने कवाँरे ही घर छोड़
हुए संन्यासी,
युग बीते
कलियों पर नहीं मधुप मँडराए ।
ये दिन आए ।
गया है घुन सभी कुछ
गया है घुन सभी कुछ
दूर तक गहरे, बहुत गहरे ।
बहुत चिनका हुआ शीशा
किसी ने रँग दिया जैसे,
बहुत चमका दिया हो या कि
घिसकर पुराने पैसे,
हुईं नज़रें सभी धुँधली
हुए हैं कान सब बहरे ।
बिवाई भरे पाँवों से
घिसटता चल रहा हर क्षण,
रुलाई रोककर सँभला
हुआ ज्यों-ज्यों सभी का मन,
ज़बां गूँगी सभी की
और उस पर हैं कड़े पहरे ।