आँगन से होकर आया है
सारा वातावरण तुम्हारी साँसों की खुशबू से पूरित,
शायद यह मधुमास तुम्हारे आँगन से होकर आया है.
इससे पहले यह मादकता, कभी न थी वातावरणों में,
महक न थी ऐसी फूलों में. बहक नहीं थी आचरणों में,
मन में यह भटकाव, न मौसम में इतना आवारापन था,
मस्ती का माहौल नहीं था, जीवन में बस खारापन था,
लेकिन कल से अनायास ही मौसम में इतना परिवर्तन,
शायद यह वातास तुम्हारे मधुबन से होकर आया है.
आज न जाने अरुणोदय में, शबनम भी सुस्मित सुरभित है,
किरणों में ताज़गी सुवासित कलियों का मस्तक गर्वित है,
आकाशी नीलिमा न जाने क्यों कर संयम तोड़ रही है,
ऊषा का अनुबंध अजाने पुलकित मन से जोड़ रही है,
ऐसा ख़ुशियों का मौसम है, बेहोशी के आलम वाला,
शायद पुष्पित हास तुम्हारे गोपन से होकर आया है,
मेरे चारों ओर तुम्हारी ख़ुशियों का उपवन महका है,
शायद इसीलिए बिन मौसम मेरा मन पंछी चहका है,
मलयानिल चन्दन के बन से खुशबू ले अगवानी करता,
उन्मादी मधु ऋतु का झोंका सबसे छेड़ाखानी करता,
सिंदूरी संध्या सतवंती साज सँवारे मुस्काती है,
यह चंदनी सुवास तुम्हारे उपवन से हो कर आया है.
तुम्हें देखकर
तुम्हें देखकर मुझको यूँ लग रहा है,
समर्पण में कोई कमी रह गयी है,
मधुर प्यार के उन सुगन्धित क्षणों में,
तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं थी,
न कोई गिला था तुम्हारे हृदय में,
परस्पर कहीं कुछ अदावत नहीं थी,
बिना बात माथे की इन सलवटों में ,
उदासी की जो बेबसी दीखती है ,
सशंकित मेरा मन है, या बेरुख़ी है ,
या अर्पण में कोई कमी रह गयी है,
अगर दिल में कोई भी नाराज़गी थी,
तो खुल कर कभी बात करते तो क्या था,
दिखावे की ख़ातिर न यूँ मुस्कुराते,
मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था,
मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही,
न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं,
मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था,
या दर्पण में कोई कमी रह गयी है,
विगत में जो तारीकियों के सहारे,
उजालों की सद्कल्पना हमने की थी,
वचन कुछ लिए कुछ दिए थे परस्पर,
सवालों की शुभकामना हमने की थी,
उन्हीं वायदों में की शपथ के भरोसे,
मैं ख़ुशियों की बारात ले आ गया हूँ,
भटकती हैं यादों की प्रेतात्माएं,
या तर्पण में कोई कमी रह गयी है.