एक भूत में होत, भूत भज पंचभूत भ्रम
एक भूत में होत, भूत भज पंचभूत भ्रम।
अनिल-अंबु-आकास, अवनि ह्वै जाति आगि सम॥
पंथ थकित मद मुकित, सुखित सर सिंधुर जोवत।
काकोदर करि कोस, उदरतर केहरि सोवत॥
पिय प्रबल जीव इहि विधि अबल, सकल विकल जलथल रहत।
तजि ‘केसवदास’ उदास मग, जेठ मास जेठहिं कहत॥
पायन को परिबो अपमान अनेक सोँ केशव मान मनैबो
पायन को परिबो अपमान अनेक सोँ केशव मान मनैबो ।
सीठी तमूर खवाइबो खैबो विशेष चहूँ दिशि चौँकि चितैबो ।
चीर कुचीलन ऊपर पौढ़िबो पातहु के खरके भगि ऎबो ।
आँखिन मूँद के सीखत राधिका कुँजन ते प्रति कुँजन जैबो ।
केशव.का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
दुरिहै क्यों भूखन बसन दुति जोबन की
दुरिहै क्यों भूखन बसन दुति जोबन की ,
देहहु की जोति होति द्यौस ऎसी राति है ।
नाहक सुबास लागे ह्वै कैसी केशव ,
सुभावती की बास भौंर भीर फारे खाति है ।
देखि तेरी सूरति की मूरति बिसूरति हूँ ,
लालन के दृग देखिबे को ललचाति है ।
चालिहै क्यों चँदमुखी कुचन के भार लए ,
कचन के भार ही लचकि लँक जाति है ।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
नैनन के तारन मै राखौ प्यारे पूतरी कै
नैनन के तारन मै राखौ प्यारे पूतरी कै,
मुरली ज्योँ लाय राखौं दसन बसन मैं।
राखौ भुज बीच बनमाली बनमाला करि,
चंदन ज्योँ चतुर चढ़ाय राखौं तन मैँ।
केसोराय कल कंठ राखौ बलि कठुला कै,
भरमि भरमि क्यों हूँ आनी है भवन मैँ।
चंपक कली सी बाल सूँघि सूँघि देवता सी,
लेहु प्यारे लाल इन्हेँ मेलि राखौं तन मैँ।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
कैधौँ कली बेला की चमेली सी चमक पर
कैधौँ कली बेला की चमेली सी चमक परै ,
कैधौं कीर कमल मे दाड़िम दुराए हैँ ।
कैधौँ मुकताहल महावर मे राखे रँगि ,
कैधौं मणि मुकुर मे सीकर सुहाए हैँ ।
कैधौं सातौँ मंडल के मंडल मयंक मध्य ,
बीजुरी के बीज सुधा सींचि कै उराए हैँ ।
केसौदास प्यारी के बदन में रदन छवि ,
सोरहो कला को काटि बत्तिस बनाए हैँ ।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै
सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै ।
केशव दास मनोज मनोहर ताहि फले फल श्री फल से द्वै ।
फूलि सरोज रह्यो तिन ऊपर रूप निरूपन चित्त चले चवै ।
तापर एक सुवा शुभ तापर खेलत बालक खंञन के द्वै ।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के
मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के,
सूत कैसो सुर ध्वनि मननि हरति है।
दारयोँ कैसो बीज दाँत पाँत से अरुण ओँठ,
केशोदास देखि दृग आनँद भरति है।
येरी मेरी तेरी मोँहिँ भावत भलाई तातेँ,
बूझति हौँ तोहिँ और बूझति डरति है।
माखन सी जीभ मुख कँज सी कोमलता मे,
काठ सी कठेठी बात कैसे निकरति है।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत
जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत,
चलन कहौँ तौ हित हानि नाहीँ सहनो।
भावै सो करहु तौ उदास भाव प्राण नाथ,
साथ लै चलहु कैसो लोक लाज बहनो।
केशोदास की सोँ तुम सुनहु छबीले लाल,
चले ही बनत जो पै नाहीँ राज रहनो।
जैसिये सिखाओ सीख तुम ही सुजान प्रिय,
तुमहिँ चलत मोहि जैसो कछु कहनो।
केशव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
पवन चक्र परचंड चलत, चहुँ ओर चपल गति
पवन चक्र परचंड चलत, चहुँ ओर चपल गति ।
भवन भामिनी तजत, भ्रमत मानहुँ तिनकी मति ॥
संन्यासी इहि मास होत, एक आसन बासी ।
पुरुषन की को कहै, भए पच्छियौ निवासी ॥
इहि समय सेज सोबन लियौ, श्रीहिं साथ श्रीनाथ हू ।
कहि केसबदास असाढ़ चल, मैं न सुन्यौ श्रुति गाथ हू ॥
रितु ग्रीषम की प्रति बासर केशव, खेलत हैं जमुना-जल में
रितु ग्रीषम की प्रति बासर ’केसब’ खेलत हैं जमुना जल में ।
इत गोप-सुता, उहिं पार गोपाल, बिराजत गोपन के गल में ॥
अति बूढ़ति हैं गति मीनन की, मिलि जाय उठें अपने थल में ।
इहिं भाँति मनोरथ पूरि दोउ जन, दूर रहैं छवि सों छल में ॥
कारे कारे तम कैसे पीतम सुधारे विधि
कारे कारे तम कैसे पीतम सुधारे विधि,
वारि वारि डारे गिरि थान सुत नाषे हैं।
घंटा ठननात घननात घुंघरनि भौंर
भननात भुवपाल अभिलाषे हैं।
थोड़े-थोड़े मदन-कपोल अति थूले-थूले
डोलें चलदल बल बिक्रम सुभाषे हैं।
दारिद दुवन दीह दलनि बिदारिबे को,
इंद्रजीत हाथी यों हथ्यार करि राषे हैं।
चौहूँ भाग बाग वन मानहुं सघन घन
चौहूँ भाग बाग वन मानहुं सघन घन,
शोभा की सी शाला हंसमाला सी सरितवर।
ऊँची-ऊँची अटनि पताका अति ऊँची-ऊँची,
कौशिक की कीन्हीं गंग खेलै खे तरलतर।
आपने सुखन निन्दत नरिन्दनि को,
घर देखियत देवता सी नारि नर।
केशवदास त्रास जहाँ केवल अदृष्ट ही की,
वारिए नगर और ओड़छे नगर पर।