भूषण स्वेत महा छवि सुंदर सानि सुवास रची सब सोने
भूषण स्वेत महा छवि सुंदर सानि सुवास रची सब सोने ।
गोरे से अँग गरूर भरी कवि खेम कहैँ जो गई तंह गौने ।
चँदमुखी कटि खीन खरी दृग मीनहु ते अति चँचल पौने ।
ऎसी जो आयकै अँक लगै तो कलँक लगौ अरु होऊ सो होने ।