टूटती है सदी की ख़ामोशी
टूटती है सदी की ख़ामोशी
फिर कोई इंक़लाब आएगा
मालियो! तुम लहू से सींचो तो
बाग़ पर फिर शबाब आएगा
सारा दुख लिख दिया भविष्यत को
मेरे ख़त का जवाब आएगा
आज गर तीरगी है किस्मत में
कल कोई आफ़ताब आएगा
एक अम्लान सूर्य होता है
एक अम्लान सूर्य होता है
सत्य पर आवरण नहीं होता
लोग कुछ इस तरह भी जीते हैं
मौत से भी मरण नहीं होता
उम्र यूँसौ बरस की होती है
एक पर अपना क्षण नहीं होता
सुख तो सब लोग बाँट लेते हैं
दुख का हस्तांतरण नहीं होता
लोग सीता की बात करते हैं
राम-सा आचरण नहीं होता
दीख भर जाए कोई काँचन मृग
लोभ का संवरण नहीं होता
हम बदलते वक़्त की आवाज़ हैं
हम बदलते वक़्त की आवाज़ हैं
आप तो साहब यूँ ही नराज़ हैं
आप क्यों कर मुत्मुइन होंगे भला
हम नई तहज़ीब का अंदाज़ हैं
हम वही नन्हें परिन्दे परिन्दे हैं हुज़ूर
जो नई परवाज़ का आग़ाज़ हैं
भोर के सूरज की हम पहली किरन
आप माज़ी का शिकस्ता साज़ हैं
आप जिस पर्बत से डरते है जनाब
हम उसे रौंदेंगे हम जाँबाज़ हैं
फैसला चलिए करें इस बात पर
तीर हैं हम आप तीरंदाज़ हैं
तेज़ धूप है तुम करते हो हमसे मधुमासों की बात
तेज़ धूप है तुम करते हो हमसे मधुमासों की बात
सोचो किसको भली लगेगी मिथ्या विश्वासों की बात
पपड़ा जाते होंट कण्ठ में काँटे-से चुभने लगते हैं
फ़्रिज का मालिक क्या समझेगा हम पीड़ित प्यासों की बात
अपनी तो छोटी से छोटी इच्छा भी आकाश- कुसुम है
और तुम्हे आकाश-कुसुम भी लाना परिहासों की बात
कुछ को शीत लहर ले बैठी कुछ को लू ने लील लिया है
मेरे घर वाले डरते हैं करते चौमासों की बात
हम लोगों को कथा सुनाकर झाँसी वाली रानी की
जनसेवक कहलाने वाले करते हैं झांसों की बात
भूख से बेहाल प्यासा हर प्रदेश
भूख से बेहाल प्यासा हर प्रदेश
फिर भी जीवित आस्था है हर प्रदेश
गाँव में साहित्य के कुछ शोध-छात्र
ढूँढते हैं गीत के भग्नावशेष
आँकड़े ही आँकड़े हर क्षेत्र में
जन्म-दर हो या कि हो पूंजी-निवेश
वो वही दफ़्तर है जन-कल्याण का
द्वार पर जिसके लिखा ‘वर्जित प्रवेश’
रात रोते हुए कटी यारो
रात रोते हुए कटी यारो
अब भी दुखती है कनपटी यारो
हमने यूँ ज़िंदगी को ओढ़ा है
जैसे चादर फटी-फटी यारो
शक की बुनियाद पर टिका है शहर
दोस्त करते हैं गलकटी यारो
भूख में कल्पना भी होती है
फ़ाख़्ता एक परकटी यारो
किससे मजबूरियाँ बयान करें
जीभ तालू से जा सटी यारो
चुप्पियों की वजह बताएँगे
वक़्त से गर कभी पटी यारो
एक जान दुख इतने सारे
एक जान दुख इतने सारे
ओ बचपन फिर से आ जा रे
दूर-दूर तक सन्नाटा है
तनहा पंछी किसे पुकारे
अनजाने सुख की आशा में
नगर-नगर भटके बंजारे
किसे पता है इस बस्ती में
कब आ जाएँगे हत्यारे
क्षमताओं के नन्हें बाज़ू
इच्छाएँ हैं चाँद सितारे
जिन लोगों ने पत्थर मारे
जिन लोगों ने पत्थर मारे
उनमें कुछ अपने शामिल थे
हर अभाव की तथा कथा में
कुछ सुन्दर सपने शामिल थे
पूजाघर में चोर -उच्चके
राम-नाम जपने शामिल थे
गहन स्वार्थों की साज़िश में
हम मरने-खपने शामिल थे
ऊबड़-खाबड़ रस्ता जीवन इच्छाओं की गठरी सर
ऊबड़-खाबड़ रस्ता जीवन इच्छाओं की गठरी सर
दिन भर भटके जंगल-जंगल शाम को तन्हा लौटे घर
लोग मिले जो बात-बात पर लड़ने को आमादा थे
सब हैं दहशतज़दा गाँव में सबके अपने-अपने डर
परवाज़ों का अन्त नहीं था डैने साथ अगर रहते
जल्लादों ने डेरे डाले गुलशन के बाहर भीतर
उजले तन काले मन वाले बस्ती के पहरे पर हैं
इक सच बैठा काँपे थर-थर झूठ बना बैठा अफ़सर
निष्ठा से परिचय कुछ कम था अवसर परख न पाए लोग
मरे उम्र भर मेहनत करते और नतीजा रहा सिफ़र
हो भले ही जाए सत्ता मांसाहारी
हो भले ही जाए सत्ता मांसाहारी
वंचितों का भाग्य फिर भी राग-दरबारी
निर्दयी अफ़सर हैं आदमखोर व्यापारी
और डाकू हो गए हैं वर्दियाँधारी
रोज़ विज्ञापन दिखे कर्त्तव्य-निष्ठा के
जबकि भ्रष्टाचार है राष्ट्रीय बीमारी
एक अंधी दौड़ में शामिल हुआ है देश
शिष्यगण पथ-भ्रष्ट हैं गुरु स्वेच्छाचारी
नष्ट होते जा रहे संबंध मृदुता के
शर्करा भी अब तो होती जा रही खारी
भावना विकलाँग हो कर जी रही है
भावना विकलांग होकर जी रही है
और कुछ हमदर्द हैं बैसाखियाँ ले कर खड़े हैं
जी रही दम साध कर बेबस शरीफ़ों कीजमात
औ’ सरे-बाज़ार वे गुस्ताख़ियाँ लेकर खड़े हैं
मान बैठे हैं पराए पीर को अपना सगा हम
आ, पराए दर्द आ, हम राखियाँ लेकर खड़े हैं
हर तरफ़ क़ानून चौकस है, व्यवस्था जागती है
पर सुखी वे लोग, जो चालाकियाँ लेकर खड़े हैं
छंदहीना बस्तियों के शोर से पर अप्रभावित
हम कबीरा-से खड़े हैं साखियाँ लेकर खड़े हैं
क्या करे आदमी जब न मंज़िल मिले
क्या करे आदमी जब न मंज़िल मिले
आपसे आप बढ़ते रहें फ़ासले
जिस कहानी का आग़ाज़ थीं रोटियाँ
उसका अंजाम हैं भूख के सिलसिले
दूर तक व्यर्थताओं का विस्तार था
बस भटकते फिरे शब्द के काफ़िले
एस सफ़र में हुए हैं अजब हादिसे
प्यास को भी मिले तो समन्दर मिले
लोग ख़ुद ही शिला बन के जमते गए
चाहते थे व्यवस्था का पर्बत हिले
भीड़ में ऐसे कोई इंसान की बातें करे
भीड़ में ऐसे कोई इन्सान की बातें करे
जैसे पत्थर के बुतों में जान की बातें करे
झूठ को सच पर जहाँ तरजीह देना आम हो
कौन होगा जो वहाँ पर ज्ञान की बातें करे
है तो ख़ुशफ़हमी महज़, लेकिन बहस से फ़ायदा
शाप-ग्रस्तों से कोई वरदान की बातें करे
मंज़िलों की ओर बढ़ना है तो चलते ही रहो
लाख दुनिया गर्दिशो-तूफ़ान की बातें करे
जो स्वयं चल पाए काँधे पर लिए अपनी सलीब
हक़ बजानिब है , वही, ईमान की बातें करे