हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए
हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए
वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए
मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें
बेचैन मेरा दिल है पल भर को क़रार आए
मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखे
हूँ दूर मैख़ाने से फिर क्यूं ए ख़ुमार आए
खिल जाएंगी ये कलियाँ महबूब के आमद से
जिस राह से वो गुज़रे गुलशन में बहार आए
जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मुहब्बत है
उन चाहने वालो में में मेरा भी शु मार आए
फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है
ऐ बादे सबा कह दे अब जाने बहार आए
बुलबुल में चहक तुमसे फूलों में महक तुमसे
रुख़सार पे कलिओं के तुमसे ही निखार आए
हरेक शै से ज़ियादा वो प्यार करता है
हरेक शै से ज़ियादा वो प्यार करता है
तमाम खुशियाँ वो मुझपे निसार करता है
मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे
वो आँख मूंद के यूँ एतबार करता है
मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया
तमाम रात मेरा इंतज़ार करता है
हमें तो प्यार है गुल से चमन से खुश्बू से
वो कैसा शख्स है फूलों पे वार करता है
मुझे खामोश निग़ाहों से देखना उनका
अभी भी दिल को मेरे बेक़रार करता है
वो जिसने पैदा किया हम सभी को दुनिया में
वही खिजां को भी रश्क़ – ए- बहार करता है
उसे ही ख़ुल्द की नेमत नसीब होगी रज़ा
ख़ुदा का ज़िक्र जो लैलो – नहार करता है
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले
हमसफ़र तुम सा प्यारा मिले न मिले
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले
साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी
मुझको जन्नत ख़ुदारा मिले न मिले
जी ले खुशिओं की पतवार है हाँथ में
बहरे ग़म में किनारा मिले न मिले
मां की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है
ये मोहब्बत की धारा मिले न मिले
वो भी होते तो आता मज़ा और भी
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले
आज जी भर के दीदार कर ले “रज़ा”
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले
दर-दर फिरते लोगों को दर दे मौला
दर-दर फिरते लोगों को दर दे मौला
बंजारों को भी अपना घर दे मौला
जो औरों की खुशियों में खुश होते हैं
उनका भी घर खुशियों से भर दे मौला
दूर गगन में उड़ना चाहूँ चिड़ियों सा
मुझ को भी वो ताक़त वो पर दे मौला
ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी
अम्नो अमां की यूं बारिश कर दे मौला
भूखे प्यासे मुफ़लिस और यतीम हैं जो
चश्मे इनायत उन पर भी कर दे मौला
जो करते हैं खून ख़राबा जुल्मो सितम
उन के भी दिल में थोडा डर दे मौला
10.10.2015 सलीम रजा
जाने कैसे होंगे आंसू बहते हैं तो बहने दो
जाने कैसे होंगे आंसू बहते हैं तो बहने दो
भूली बिसरी बात पुरानी कहते हैं तो कहने दो
हम बंजारों को ना कोई बाँध सका ज़ंजीरों में
आज यहां कल वहां भटकते रहते हैं तो रहने दो
मुफ़लिस की तो मजबूरी है सर्दी गर्मी बारिश क्या
रोटी की ख़ातिर सारे ग़म सहते हैं तो सहने दो
अपने सुख संग मेरे दुख को साथ कहां ले जाओगे
अलग अलग वो इक दूजे से रहते हैं तो रहने दो
खून ग़रीबों का दामन में अपने ना लगने देंगें
सपनो के गर महल हमारे ढहते हैं तो ढहने दो
प्यार में उनके सुधबुध खोकर इस तरहा बेहाल हुए
लोग हमे आशिक़ आवारा कहते हैं तो कहने दो
मस्त मगन हम अपनी धुन में रहते हैं दीवानो सा
जाने कितने हमको पागल कहते हैं तो कहने दो
रिश्ते वफ़ा के सब से निभाकर तो देखिए
रिश्ते वफ़ा के सब से निभाकर तो देखिए
सारे जहाँ को अपना बनाकर तो देखिए
इसका मिलेगे अज़्र खुदा से बहुत बड़ा
भूखे को एक रोटी खिलाकर तो देखिए
खिल जाएगा खुशी से वो चेह्रा गुलाब सा
रोते हुए को आप हंसा कर तो देखिए
दुश्मन भी एक रोज़ मिलेगा वफ़ा के साथ
परचम अमाँ का हर सू उड़ाकर तो देखिए
हर राहगीर दिल से दुआ देगा आपको
इस तीरगी में शम्मां जलाकर तो देखिए
खुश्बू से महक जाएगा घर बार आपका
उजड़े हुए चमन को बसाकर तो देखिए
इक चौंदवी का चाँद नज़र आएगा “रज़ा”
जुल्फे रूखे हँसी से हटाकर तो देखिए
सलीम रज़ा रीवा 05-02-2012
कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी
कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी
अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो
मुहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी
किसी को शौक़ यूँ होता नहीं ग़ुरबत में जीने का
यक़ीनन सामने उसके बड़ी दुश्वारियाँ होंगी
ये होली ईद कहती है भला कब अपने हांथों में
वफ़ा का रंग होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी
न छोड़ो ये समझ के आग अब ठंडी होगी
ये मुम्किन है दबी कुछ राख में चिंगारियाँ होंगी
मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के
यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी
सुख़नवर का ये आंगन है रज़ा शेरों की ख़ुश्बू है
ग़ज़ल और गीत नज़्मों की यहाँ फुलवारियाँ होंगी
गुलशन में जैसे फूल कली ताज़गी नहीं
गुलशन में जैसे फूल कली ताज़गी नहीं
तेरे बग़ैर ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी नहीं
मैं मिल नहीं सका तो ये कैसे समझ लिया
हमको है तुमसे प्यार नहीं दोस्ती नहीं
तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे
तू खुश नहीं तो पास मेरे भी खुशी नहीं
गर माँ है मेहरबान तो ये रब भी मेहरबाँ
माँ से जहाँ में कोई भी शै कीमती नहीं
तू क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी
इन चाँद में सितारों में भी रौशनी नहीं
ख़ूनें जिगर से मैंने संवरा है शेर को
मेरे ग़ज़ल का रंग कोई काग़ जी नहीं
मैं खुद गुनहगार हूँ अपनी निगाह में
उसके खुलूशो प्यार में कोई कमी नहीं
तुमसे रज़ा के शेरों में चन्दन सी है महक
तू जो नहीं ग़ज़ल भी नहीं शायरी नहीं
जब से उनकी मेहरबानी हो गई
जब से उनकी मेहरबानी हो गई
जिंदगी अब रात रानी हो गई
उसने माँगा जिन्दगी सौग़ात में
नाम उसके जिन्दगानी हो गयी
इब्तदा-ए-जिंदगी की सुब्ह से
शाम तक पूरी कहानी हो गयी
रूठना हसना मनाना प्यार में
ज़िंदगी कितनी सुहानी हो गयी
खो गए मशरूफियत की भीड़ में
ख़त्म इसमें जिंदगानी हो गई
मैं भी उनका हूँ दिवाना इस तरह
जिस तरह मीरा दीवानी हो गयी
उसने माँगा जिन्दगी सौग़ात में
नाम उसके जिन्दगानी हो गयी
ना ख़ुदा जब ज़िंदगी का वो “रज़ा”
पार अपनी ज़िंदगानी हो गई
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये
यूँ मजहबों में बंट के ना संसार बांटिये!
कुछ बांटना है आपको तो प्यार बांटिये!!
आंगन मे खून कि न बहे नद्दियाँ कभी!
अपने हि घर मे तीर ना तलवार बाँटिये!!
रहने भी दीजे गुंचाओ गुल को इसी तरह!
गुलशन हरा भरा है ना श्रंगार बाँटिये!!
हर धर्म के गुलो से महकता है ये चमन
खंजर चला के आप न गुलज़ार बाँटिये!!
जब भी मिलें किसी से तो दिल खोलकर मिलें!
छोटी सी ज़िन्दगी में ना तकरार बाटिये!!
दुनिया से दुश्मनी को मिटाने के वास्ते!
लोगो मे भाई चारे का अख़बार बाँटिये!!
इंसानियत का है ये तक़ाज़ा की ऐ “रज़ा”
ता उम्र इस ज़माने में बस प्यार बाँटिये!!
क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है
क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है!
दुनिया में इन्सान बराबर होता है!
पाकीज़ा जज़्बात है जिसके सीने में!
उसका दिल भरपूर मुनौअर होता है!
ज़ाहिद का क्या काम भला मैख़ाने में!
मैख़ाना तो रिंदों का घर होता है!
जो तारीकी में भी रस्ता दिखलाए!
वो ही हमदम वो ही रहबर होता है!
टूटा-फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही!
अपना घर तो अपना ही घर होता है!
ताल में पंछी पनघट गागर चौपालें!
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है!
कैद करो न इनको पिंजरों में कोई!
अम्न का पंछी “रज़ा कबूतर होता है!
अज़ीज़ जान से ज्यादा है शायरी कि तरह
अज़ीज़ जान से ज्यादा है शायरी कि तरह
सदा वो साथ में रहता है ज़िन्दगी की तरह!
क़सम जो खाते थे संग संग मेंजीने मरने की
मेरी गली से गुज़रता है अज़नबी की तरह!
उसी के नूर से दीवारो दर ये रौशन है
वो मेरे दिल में समाया है रौशनी कि तरह!
वो जब भी आतें है जुल्फ़े बिखेर कर छत पे
अंधेरी रात भी लगती है चांदनी कि तरह!
बिखर के माला से मोती का कुछ वजूद नहीं
मैं चाहता हूँ जुड़े लोग इक कड़ी कि तरह!
न इनको तोड़ के फेंको गली में कूंचों में
ये बेटियां है चमन में हँसी कली कि तरह!
ये मांगता है “रज़ा” हर घड़ी दुआ रब से
कभी तो जी लूँ ज़रा देर आदमी कि तरह!
मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए
.मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए
ग़ैर से क्या हो गिला अपने बेगाने हो गए
चंद दिन के फ़ासले के बाद हम जब भी मिल
यूँ लगा जैसे मिले हम को ज़माने हो गए
पतझड़ों के साथ मेरे दिन गुज़रते थे अभी
आप के आने से मेरे दिन सुहाने हो गए
मुस्कराहट उनकी कैसे भूल पाउँगा कभी
इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए
आँख, में, शर्मों, हया, पवंदियाँ, रुश्वाइयां
उनके न आने के ये अच्छे बहाने हो गए
अब भी है रग रग में क़ायम प्यार की ख़ुश्बू “रज़ा
क्या हुआ जो ज़िस्म के कपड़े पुराने हो गए
चाँद सूरज में सितारों में तेरा नाम रहे
चाँद सूरज में सितारों में तेरा नाम रहे
हाँथ में तेरे सदा खुशिओं भरा जाम रहे
तेरी खुशहाली की हरपल ये दुआ करते हैं
तेरे दामन में खुशी सुब्ह रहे शाम रहे
तेरे दीदार को जब शहर में तेरे पहुचे
मेरे दामन से न लिपटा कोई इल्ज़ाम रहे
मै तो हर सुब्ह खिज़ाओ में बसर कर लूँगा
मेरे महबूब तेरी महकी हुई शाम रहे
ठोकरे खाके भी सीखा है सम्हलना जिसने
वो सदा ज़िन्दा रहे उसका सदा नाम रहे
बेखुदी छाये जो मुझपे तो वो ऐसी छाये
आँख में तेरी झलक लब पे तेरा नाम रहे
आप की चश्में इनायत की नज़र हो जिस पर
उसके हांथों में सदा खुशिओं भरा जाम रहे
हो ख़ुशी सारे जमाने में दुआ करते हैं
मेरे होटों पे रज़ा इतना ही पैग़ाम रहे
मेरा मज़हब यही सिखाता है
मेरा मज़हब यही सिखाता है
सारी दुनिया से मेरा नाता है
ज़िन्दगी कम है बाँट ले खुशियाँ
दिल किसी का तू क्यूँ दुखाता है
हर भटकते हुए मुसाफ़िर को
राह सीधा वही दिखाता है
चहचहाते हुए परिन्दों को
कौन दाना यहाँ चुग़ाता है
दुश्मनों के तमाम चालों से
मेरा रहबर मुझे बचाता है
दोस्त उसको ही बस कहा जाए
मुश्किलों में जो काम आता है
दुश्मनों से “रज़ा” बड़ा है वो
रास्ते में जो छोड़ जाता है
मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा
मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा
मेरी सोई हुई तक़दीर जगाने आजा
तेरी आमद को समझ लुगा मुक़द्दर अपना
रूह बनके मेरी धड़कन मे समाने आजा
मैं तेरे प्यार की खुश्बू से महक जाऊगा
गुलशने दिल को मुहब्बत से सजाने आजा
तेरी उम्मीद लिए बैठे हैं ज़माने से
कर के वादा जो गये थे वो निभाने आजा
बिन तेरे सूना है ख़्वाबो का ख़्यालो का महल
ऐसी वीरानगी में फूल सजाने आजा
तेरी हर एक अदा जान से प्यारी है मुझे
तू हंसाने न सही मुझको सताने आजा
अब तड़प दिल की नही और सही जाती है
प्यार की कोई ग़ज़ल मुझको सुनाने आजा
मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए
मय की आगोश में मज़बूर दीवाने आए
दर्दे दिल दर्दे जिगर हमको को सुनाने आए
उनकी आमद की ख़बर पहुची फ़लक़ पर जैसे
चाँद तारे ज़मी पर पलकें बिछाने आए
ख़ूने इन्सां से रगें हाथ है जिन लोगो के
अम्न का पाठ हमें वो भी पढ़ाने आए
उनके सीने में है कुछ अबभी वफ़ा की ख़ुश्बू
छुप के मैयत में मेरे फूल चढ़ाने आए
एक उम्मीद है धुल जाएँगे सब पाप यहाँ
यही अरमान लिए गंगा नहाने आए
उनके आने से अंधेरों का भरम टूट गया
बाद मुद्दत के सदाक़त के ज़माने आए
जिनकी यारी पे बड़ा नाज़ ‘रज़ा’ था मुझको
आज महफ़िल में वही ऊँगली उठाने आए
माना की लोग जीते हैं हर पल खुशी के साथ
माना की लोग जीते हैं हर पल खुशी के साथ
शामिल है जिंदगी में मगर ग़म सभी के साथ
आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे
कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी मुफ़लिसी के साथ
नाज़ो अदा के साथ कभी शोखिओं के साथ
दिल में उतर गया वो बड़ी सादगी के साथ
ख़ूने जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में
मुझको बहुत है प्यार मेरी शायरी के साथ
आसानियां रहीं कभी दुश्वारियां रहीं
मौसम के पेंचो ख़म भी रहे ज़िंदगी के साथ
उसपे ना एतबार कभी कीजिए “रज़ा”
धोखा किया है जिसने हर एक आदमी के साथ.
इश्क तुमसे किया नहीं होता
.इश्क तुमसे किया नहीं होता
जिन्दगी में मज़ा नहीं होता
रात भी यूँ हँसी नहीं होती
दिन भी यूँ ख़ुशनुमा नहीं होता
जिन्दगी तो संवर गयी होती
ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता
उसकी चाहत ने कर दिया पागल
प्यार इतना किया नहीं होता
दिल किसी का दुखा नहीं होता
तो फिर इतना बुरा नहीं होता
ज़ख्म खाकर भी मुस्कुराने का
सब में ये हौसला नहीं होता
सब उसी का रज़ा करिश्मा है
कुछ ना होता खुदा नहीं होता
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है
ये दुनिया खूबसूरत है ज़माना खुबसूरत है
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है
वो मेरे बिन तड़पते हैं मैं उनके बिन तड़पता हूँ
यही तो उनकी चाहत है यही मेरी मुहब्बत है
मोहब्बत की नज़र से आप ने देखा सरे महफ़िल
करम है मेहरबानी आप की चश्में इनायत है
मुहब्बत से ही दुनिया के हर इक दस्तूर निभते हैं
हर इक रिश्ता हर इक नाता मुहब्बत की बदौलत है
कभी कलिओं का मुस्काना कभी फूलों का मुरझाना
ये कुदरत के तकाज़े हैं यही गुलशन की किस्मत है
वो मालिक है दो आलम का वो जो चाहे अता कर दे
उसी के हाँथ इज्ज़त है उसी के नाम शोहरत है
सभी से प्यार से मिलने की आदत है “रज़ा” हमको
यही इंसानियत है और यही अनमोल दौलत है
मोतियों की तरह जगमगाते रहो
मोतियों की तरह जगमगाते रहो
बुल बुलों की तरह चहचहाते रहो
जब तलक आसमां में सितारें रहें
ज़िंदगी भर सदा मुस्कुराते रहो
इन फ़िज़ाओं में मस्ती सी छा जाएगी
अपनी ज़ुल्फ़ों की ख़ुश्बू उड़ाते रहो
हम भी तो आपके जां निसारों में हैं
क़िस्सा-ए-दिल हमें भी सुनाते रहो
देखना रौशनी कम न होवे कहीं
इन चराग़ों की लौ को बढ़ाते रहो
इतनी खुशियां मिले ज़िंदगी में तुम्हे
दोनों हाथों से सबको लुटाते रहे
रंगे गुल रुख़ पे हरदम नुमाया रहे
जब निग़ाहें मिले मुस्कुराते रहो