विश्वास
अंधेरी गली
पार करते वक़्त
एक नन्हा विश्वास
हमारी उंगली थामता है
और बाद में हम पाते हैं
कि हमीं उनकी उंगली
थामे हैं।
छलांग
एक मज़बूत
इमारत
पानी के बीच
हिलती है।
मैंने छलांग लगा दी है
तुम्हारे भीतर।
एक सवाल
तुम क्यों
हर बार
अपनी मुट्ठी में
भींच लेते हो
अपने फेफड़ों की
पीली-सी साँस?
क्या तुम
हरे पत्तों की
झूमती हवा के सामने
अपनी हथेली
खुली नहीं
रख सकते?
(रचनाकाल : 1978)
तुम्हारी ग़लतफ़हमी
तुम लेटे थे और नाराज़ थे
कि छत तुम्हारे
ऊपर है
तुम खड़े हो गए
और ख़ुश हो लिए
कि ज़मीन तुम्हारे
पाँवों तले है;
क्या तुम दरवाज़े से
बाहर नहीं आओगे
यह महसूस करने
कि तुम दीवारों
के बीच थे?
मुलाक़ात
रात भर के बाद
दरवाज़े खोले
तो
रोशनी के साथ
धूप भी आई थी
चुपके से
जब तक मैंने
उसके लिए बिस्तर बिछाया
वह सीढ़ियाँ उतर रही थी।
(रचनाकाल : 1983)
ख़ूबसूरती
रोशनी की सुराही
उलट गई
पानी में
और पानी
व रोशनी
दोनों ही पहले से
बहुत ज़्यादा
ख़ूबसूरत हो उठे
एकदम
प्यार की तरह।
बोझिल रातें
बिजली के तारों पर
पतंगें अटकी हैं
फटी हुई
मेरी शामें
जड़ी हैं– उनमें
बिजली के तारों पर
रातों का
बहुत बोझ
हो गया है।
खिड़की से
खिड़की से
दिख रही थी दूर बहुत दूर
एक रोशनी जलती हुई
मैं उसे ठीक से
देखती-देखती
कि कविता
उसे लाने निकल चुकी थी।
(रचनाकाल : 1985)
नज़दीकी
समुद्र इतना नज़दीक है
कि मुझे उसका
कभी दूर होना
याद ही नहीं
यात्राएँ
उसकी छुअन में घुल गई हैं
पानी में हवा की तरह
दोस्त की वापसी
किसी पहाड़ी फुनगी पर
एक कोया बर्फ़
गिरी हौले से
देवदारु के वृक्षों पर
अंगार-सी धूप
बैठ गई
कहीं दोस्त
आया
…वापस
जुड़वाँ पेड़
एक ही बीज की
दो कोंपलें
एक ही जड़ के
दो पेड़
जुड़वाँ पेड़ों के
दो कद्दावर मस्तक
क्षितिज में
जा मुस्कुराए
माथा मिला-मिला कर
ख़ैरियत
मेरी मित्र ने
पत्र में मुझे लिखा–
कैसी हो? ठीक तो हो?
मैंने उसका पत्र
उठा कर
एक लिफ़ाफ़े में बन्द किया
लिफ़ाफ़े पर
अपनी मित्र का पता लिखा
और उसे डाक में डाल दिया।
पैर!
पैर आदत में होते थे
पहले कभी
जब भी चलते थे
पैर यात्रा में हुए
जब भी
दूसरों तक पहुँचे थे
पैर मंज़िल पर होते हैं
अब
तुम तक आते हैं जब