ये नफ़रत का असर कब तक रहेगा
ये नफ़रत का असर कब तक रहेगा
नगर सहमा हुआ कब तक रहेगा
हक़ीक़त जान जाएगा तुम्हारी
ज़माना बेख़बर कब तक रहेगा
बग़ावत लाज़मी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा
ये इक दिन हार जाएगी ही लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा
ज़मीं पर लौट कर आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा
यहाँ फिर लौट आएँगी बहारें
मेरा सूना ये घर कब तक रहेगा
लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना ये शजर कब तक रहेगा
काम रख तू सिर्फ़ अपने काम से
काम रख तू सिर्फ़ अपने काम से
ज़िन्दगी कट जाएगी आराम से
मुझसे नज़रें मत मिला ओ अजनबी
डर ज़रा इस इश्क़ के अंजाम से
ज़िक्र मेरा क्या हुआ वह चल पड़े
इस कदर जलते है मेरे नाम से
कर दिया मदिरा ने घर बर्बाद, ये
वो ख़फ़ा अब हो गया है जाम से
भूख से माँ बाप घर में मर गए
लौट कर आया वह चारों धाम से
अब वही निकले बड़े ज्ञानी यहाँ
देखने में जो लगे थे आम से
उसने देखा ओर नज़रें फेर ली
जिसके ख़ातिर हम हुए बदनाम से
क्यूँ मुझे बार-बार दिखता है
क्यूँ मुझे बार-बार दिखता है
उसकी आँखों में प्यार दिखता है
उसको पाने की चाह में देखो
हर कोई बेक़रार दिखता है
क्या छुपाता है मेरी नज़रों से
अब मुझे आर-पार दिखता है
रेत बहता है अब हवाओं में
हर तरफ़ थार-थार दिखता है
और कोई मरज़ नहीं उसको
इश्क़ का ही बुख़ार दिखता है
ज़िन्दगी के हरेक पन्नें पर
मुझको गीता का सार दिखता है
जहाँ देखो सियासत हो गई है
जहाँ देखो सियासत हो गई है
यही सबसे बुरी लत हो गई है
दुआ जाने लगी किसकी ये मुझको
मेरे घर में भी बरकत हो गई है
उड़ा देगा वह सारी ही पतंगे
उसे हासिल महारत हो गई है
रही इन्कार करती प्यार से ही
मगर वह आज सहमत हो गई है
बड़ा ख़ुदगर्ज़ निकला दिल हमारा
नई पैदा ये हसरत हो गई है
ये उसकी आँख में अब डर नहीं था
लगा उसको मुहब्बत हो गई है
चुनावी दौर का सारा असर ये
ग़रीबों की भी दावत हो गई है
समंदर और किनारे बोलते हैं
समंदर और किनारे बोलते हैं
सुनों नदिया ये झरने बोलते हैं
वो अच्छा सामने कहते हैं मुझको
बुरा बस पीठ पीछे बोलते हैं
ख़ता तूने भले अपनी न मानी
तेरे कपड़े के छीटे बोलते हैं
जो सूखे हैं वह ज़्यादा फड़फड़ाते
हवा चलती तो पत्ते बोलते हैं
मैं उनकी ही वफ़ाओं की हूँ कायल
जिसे छलिया ये सारे बोलते हैं
मेरी उनको ज़रूरत ही नहीं है
मेरे अपनों के चेहरे बोलते हैं
न उसकी बात को हल्की लिया कर
तजुअर्बों से सयाने बोलते हैं
नई तहज़ीब सीखी ये कहाँ से
बड़ों के बीच बच्चे बोलते हैं
कभी इस घर में चूड़ी थी खनकती
कि अब टूटे झरोंखे बोलते हैं
तरक़्की को बयाँ ही कर दिया अब
जो इन सड़कों के गड्डे बोलते हैं
तू सारी रात ही रोता रहा क्या
तेरी आँखों के कोनें बोलते हैं
सार छंद
मेरे मोहन मेरे गिरधर , मेरे कृष्ण मुरारी
गिरवरधारी नटवर नागर ,मुरलीधर बनवारी
जन्म लिया मथुरा में तुमने, ब्रज में रास रचाया
देती है हर और दिखाई, गिरधर तेरी माया
मार पूतना भी दी तुमने ,अका बकासुर मारे
ब्रज के स्वामी तुम हो मोहन , गोवर्धन नख धारे
माखन की चोरी करते हो ,सखियों के घर जाकर
सब की सुध-बुध हर लेते हो ,मुरली मधुर बजाकर
नाग कालिया के फन ऊपर, नाचे नंददुलारे
जो गाता है कृष्णा -कृष्णा ,सबके भाग सँवारे
बने सारथी तुम अर्जुन के ,रण में खेल रचाया
जब अर्जुन ने धीरज खोया ,गीता सार सुनाया
राधा तेरी ही दीवानी ,तुमसे बाँधी डोरी
चोर बड़े मतवाले हो तुम, दिल की करते चोरी
मीरा जोगन हुई सावँरे ,गली-गली गुण गाकर
कुब्जा का कूबड़ छुड़वाया , माथे तिलक लगाकर
दीन सुदामा को कर डाला,तीन लोक का स्वामी
कोई रहस्य छुपा न तुमसे ,तुम हो अंतर्यामी
कभी साँवरे मुझको अपनी, एक झलक दिखला दो
मैं आऊँगी तुमसे मिलने , अपना पता बता दो
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उनके मन में
उनके मन में है क्या समझते हैं
हम भी अच्छा बुरा समझते हैं
दर्द को और भी बढ़ा देगी
आप जिसको दवा समझते हैं
क़त्ल करना अजीब है उसका
सब उसे हादसा समझते हैं
वो हक़ीक़त से आशना ही नहीं
उनको जो बेवफ़ा समझते हैं
अब सुनीता क़लम की पूजा को
सिर्फ़ हम साधना समझते हैं