जुनूं हूँ, आशिकी हूँ
जुनूं हूं, आशिक़ी हूं
बशर हूं, बंदगी हूं
ब-ज़ाहिर बेरुखी हूं
वफ़ा की बेबसी हूं
गुलों की ताज़गी हूं
मैं शबनम की नमी हूं
शरीके-ज़िन्दगी हूं
मैं मस्ती की नदी हूं
दिसंबर का हूं सूरज
मर्इ की चांदनी हूं
निहारो रात-दिन तुम
मैं इक सूरत भली हूं
हया सिंगार मेरा
कली की सादगी हूं
गवाही मुजरिमों की
अदालत में खड़ी हूं
मुहब्बत का हूं क़ायल
‘कंवल’इक आदमी हूं
मुस्कुराऊंगा,गुनगुनाऊंगा
मुस्कराउंगा, गुनगुनाउंगा
मैं तेरा हौसला बढ़ाउंगा
रूठने की अदा निराली है
जब तू रूठेगा, मैं मनाउंगा
क़ुरबतों के चिराग़ गुल करके
फ़ासलों के दिये जलाउंगा
जुगनुओं-सालिबास पहनूंगा
तेरी आंखों में झिलमिलाउंगा
मेहर बांहो गाजबवो जाने-‘कंवल’
उसकी गुस्ताखियां गिनाउंगा
ख़ूबसूरत लगा चाँद कल
खूबसूरत लगा चांद कल
मैंने उसको सुनार्इ ग़ज़ल
ख़्वाब के झील में ले गर्इ
ख़ूबसूरत सी उसकी पहल
शहर में फिर धमाका हुआ
गांव कस्बे गये फिर दहल
ख़ूबसूरत खिलौनों को छू
सारे बच्चे गये कल मचल
डायबेटिज़ का मत साथ दे
तू सवेरे-सवेरे टहल
सादगी ने किया बेज़ुबां
क्या बयां आपका है’कंवल’
तू उधर था,इधर हो गया
तू उधर था, इधर हो गया
ख़ूबसूरत सफ़र हो गया
आंख नम हो गर्इ क्यों तेरी
क्या कोर्इ दर बदर हो गया
चांदनी खिड़कियों पर मिली
चांद आशुफ़्तासर हो गया
बेबसी बेरुख़ी बन गर्इ
जब से मैं मोतबर हो गया
मुझ पे उसका करम है ‘कंवल’
वो मेरा हमसफ़र हो गया
इक नशा सा ज़हन पर छाने लगा
इक नशा सा ज़हन पर छाने लगा
आपका चेहरा मुझे भाने लगा
चांदनी बिस्तर पे इतराने लगी
चांद बांहों में नज़र आने लगा
रूह पर मदहोशियां छाने लगीं
जिस्म ग़ज़लें वस्ल की गाने लगा
तुम करम फ़रमा हुये सदशु क्रिया
ख़्वाब मेरा मुझ को याद आने लगा
रफ़्तारफ़्तायासमीं खिलने लगी
मौसमे- गुल र्इश्क़ फ़रमाने लगा
जुल़्फ की खुशबू, शगुफ़्तालब ‘कंवल’
मंज़रे-पुर कैफ़ दिखलाने लगा
फूल को ख़ुशबू सितारों को गगन हासिल हो
फूल को ख़ुशबू, सितारों को गगन हासिल हो
सुबह को शाम से मिलने की लगन हासिल हो
अनसुने क़िस्सों को बेखौ़फ़ कथन हासिल हो
ग़म के अहसास को ग़ज़लों का सुख़न हासिल हो
आप से मिल के मुझे ख़ुशियों का घर-बार मिले
आपके घर को भी लज़्ज़त का सहन हासिल हो
मेरी फ़ुरकत में उदास आप कभी हों कि न हों
मेरी आंखों को जुदार्इ में चुभन हासिल हो
मुझ को हासिल हो तेरी ख़ुशबू, तेरे साथ सफ़र
और तुझ को मेरी चाहत का चमन हासिल हो
तेरे दीदार की ठंडक मुझे गर्मी में मिले
सर्दियों में तेरे गालों की तपन हासिल हो
गुनगुनाता रहे रिमझिम के फुहारों में ‘कंवल’
बारिशों में तेरा भीगा सा बदन हासिल हो
रहबरे-कौम, रहनुमा तुम हो
रहबरे-क़ौम, रहनुमा तुम हो
नाउमीदों का आसरा तुम हो
मैं सियासत की बेर्इमान गली
और रिश्वत की अप्सरा तुम हो
गालियों में तलाशता हूँ शहद
राजनीति का ज़ायक़ा तुम हो
चौक परकी है, बहस चौका में
सेक्युलर मैं हूँ, भाजपा तुम हो
फ़स्ले-बेरोजगारी हैं दोनों
मैं हूँ स्कूल, शिक्षिका तुम हो
मुझको क्या इससे फ़र्क़ पड़ने का
मैंने माना कि दूसरा तुम हो
क़ुरबतें सीढि़यों से उतरेंगी
लोग समझेंगे फ़ासला तुम हो
आवरण मैं उदासियों का’कंवल’
नथ मे जो, वो क़हक़हा तुम हो
नाम हूँ मैं, मेरा पता तुम हो
नाम हूँ मैं,मेरा पता तुम हो
मेरे जीने का मुद्दआ तुम हो
मेरी सांसों का सिलसिला तुम हो
मेरी पूजा हो, देवता तुम हो
पत्तियों पर लिखी इबारत मैं
फूल के होंट कालिखा तुम हो
अनसुनी अनकही कहानी मैं
जग में मशहूर फ़लस़फा तुम हो
तुम से शौकत, तुम्हीं से है शोहरत
मैं ग़ज़ल हूँ, मुशायरा तुम हो
सुर्ख टावल में भीगा-गीला बदन
कितना दिलकश मुजस्समा तुम हो
फूल हूँ मैं, है मुझ में आकर्षण
तितलियों सी लुभावना तुम हो
मैं सफ़र, तुम हो मील का पत्थर
चल रहा मैं हूँ, रास्ता तुम हो
तुझ से मैं ,मुझसे आशना तुम हो
तुझ से मैं मुझ से आशना तुम हो
मैं हूँ ख़ुशबू मगर हवा तुम हो
मैं लिखावट तेरी हथेली की
मेरी तक़दीर कालिखा तुम हो
तुम अगर सच हो, मैं भी झूठ नहीं
अक्स मैं, मेरा आइना तुम हो
बेख़ुदी ने मेरा भरम तोड़ा
मैं समझता रहा ख़ुदा तुम हो
मैं हूँ मुजरिम, मेरे हो मुंसिफ़ तुम
मैं ख़ता हूँ, मेरी सज़ा तुम हो
सीप की आस बन के चाहूँ तुम्हें
लाये जो मोती वह घटा तुम हो
अपनी मजबूरियों का रंज नहीं
बेवफ़ा मैं हूँ, बावफ़ा तुम हो
रोग बनकर पड़ा हुआ है ‘कंवल’
तुम दवा हो, मेरी दुआ तुम हो