नज़र लग गयी
घायल है, चोट
किधर किधर लग गयी,
सोने की चिड़िया की
फिकर लग गयी।
हौसला गज़ब का था
गज़ब की उड़ान
एक किये रहती थी
धरा आसमान
बड़ी खूबसूरत थी
नज़र लग गयी।
गहन अँधेरों में जब
दुनिया घबराती
परों में उजाला भर
रास्ता दिखाती
तभी “विश्वगुरु” वाली
मुहर लग गयी
इतनी तकलीफ़ है कि
कही भी न जाये
बढ़ते ही आते हैं
नफ़रत के साये
प्यार बाँटने में जब
उमर लग गयी
कैसा यू-टर्न
चुपके ही चुपके
ये काम हो गया,
भारत इंडिया का
गुलाम हो गया।
वैसा ही संविधान
वैसा कानून
इंग्लिश जो बोले, वो
है अफ़लातून
हिन्दी का मालिक
बस राम हो गया।
बनाया जिन्हें हमने
पब्लिक सर्वेण्ट
मुल्क मिल्कियत उनकी
हन्ड्रेड परसेण्ट
जनता का जीना
हराम हो गया।
देश ने लिया आखिर
कैसा यू-टर्न
संस्कृति को लील गया
कल्चर वेस्टर्न
खत्म नमस्कार व
प्रणाम हो गया।
उम्मीदों का जलने लगा गला
मेहनत हुई पसीने से तर
किसका हुआ भला
चढ़ी दुपहरी उम्मीदों का
जलने लगा गला
हैण्डपंप हाँफे है, सब–
मर्सिबल पड़ा बीमार
इंतजाम कितने थे पर
सबके सब हैं बेकार
चिड़िया प्यासी, ढोर पियासे
प्यासा हर मसला
चटकी धूप कड़ाके की
जलता है सारा गाँव
ढूँढ़ रही है गर्मी रानी
शीतल–सुरभित छाँव
पेड़ काट बरगद का सबने
फिर फिर हाथ मला
मन झुलसा है, हुलसा भी है
आये हैं मेहमान
अगवानी में चाय–पान में
सारा घर ‘हलकान’
शुभ साइत थी, बिटिया का
गौना भी नहीं टला
सभ्यता नंगी खड़ी
सुलगती सिगरेट
उड़ते धुँए के छल्ले
चीखती चेतावनी
पड़ती नहीं पल्ले।
शहर ऊँचे और
बौनी धूप आँगन की
घर उगाना काटकर
जड़ ऑक्सीजन की
सभ्यता नंगी खड़ी है
बीसवें तल्ले।
धधकता सूरज
पिघलता ग्लेशियर का तन
दीखते सच का
समुन्दर क्या करे खण्डन
दे रहे हैं सांत्वना
अखबार के हल्ले।
बारिशों में भीग जायें
प्यास वाले स्वर
आइये हम रोप लें
बादल हथेली पर
इक हरी उम्मीद ओढ़ें
फूटते कल्ले।
माँ
पाठ ममता का
ज़माने को पढ़ा कर रह गयी माँ
पालने से गिरी बिटिया
छटपटाकर रह गयी माँ
बहन-बेटी-प्रेमिका-
पत्नी सदृश संबंध कितने
एक अल्हड़ सी किशोरी
में रहे व्यक्तित्व कितने
पर तिरोहित हो गये सब
शेष केवल रह गयी माँ।
खेलना छपकोरिया
नल खोलकर पानी गिराकर
फेंकना सामान सारा
आलमारी से उठाकर
सैकड़ों “बम्माछियों” पर
मुस्कुराकर रह गयी माँ।
रोज साड़ी और गहने
के लिये मनुहार छूटा
शौक छूटे और फ़ैशन
अन्त में श्रृंगार छूटा
लाडली के वास्ते खुद को
भुलाकर रह गयी माँ।
सच बेहाल मिलेंगे
फोटोशॉपित तथ्यों के
भ्रमजाल मिलेंगे
आभासी दुनिया में
सच बेहाल मिलेंगे।
जाने किसका धड़ है
सिर जाने किसका
पर्वत दिखे करीने से
खिसका-खिसका
नकली आँसू में
भीगे रूमाल मिलेंगे।
अपनी ढपली और
राग अपने-अपने
चकाचौंध में डूबे हैं
सारे सपने
एक सिरे से भटके
सुर-लय-ताल मिलेंगे।
कबिरा के ढाई आखर
भी झूठ हुए
साखी-सबद-रमैनी
सारे हूट हुए
मंचों पर इठलाते
नरकंकाल मिलेंगे।
मुस्काते श्रीराम
देख यह दृश्य खड़ा
हनूमान ग़ायब
दसकंधर गले पड़ा
आज नहीं तो कल
आज नहीं तो कल
अच्छे दिन आयेंगे
हम सपनों का
गाल नोच दुलरायेंगे।
फीके पड़ते रंगो से
घबराना क्या
इन्द्रधनुष का अपना
ठौर-ठिकाना क्या
बादल फिर से
अपनी पीठ खुजायेंगे।
भला-बुरा
नंगी आँखों से देखेंगे
खुली हवा में
खिली धूप हम सेकेंगे
यूँ ही नहीं
किसी को हम गरियायेंगे।
सब कुछ है गर
ढोलक है हरमुनिया है
उम्मीदों पर टिकी हुई
यह दुनिया है
हम इस दुनिया को
आगे ले जायेंगे।
जीवन है टफ़
धुआँ-धुआँ शहर हुआ
जीवन है टफ़
बिगड़ गये हैं तीनों
वात पित्त कफ़
खेद लिये बैठी है
हर जगह रुकावट
बड़े -बड़े नगरों की
अजब है लिखावट
समझ नहीं आता
है फ़ेयर या रफ़
साबुनदानी जैसे
हैं अपने दड़बे
गली में समाये हैं
कस्बे के कस्बे
सच्चाई रोटी की
खेल रही ब्लफ़
लकदक बाजार सजे
बिकतीं सुविधाएँ
ढूँढ़ते रहो सुख है
बाएँ या दाएँ
अपनापन दुर्लभ है
कहूँ बाहलफ़
कुछ नया-कुछ पुराना
चिड़िया की चोंच में
चावल का दाना,
देख याद आया
कुछ नया-कुछ पुराना।
बड़ा सा महानगर
और हम अकेले
यादों के पंछी ने
अपने पर खोले
भला लगा छुटकी का
मिस्ड-काॅल आना।
कभी-कभी मन को हैं
जैसे गुहराते
जलते अलाव और
ठंड भरी रातें
रमई काका का
सौ किस्से सुनाना।
दुख भूला, लगा जैसे
सब कुछ है फाईन
माँ-बाबूजी के हुए
चरण ऑनलाईन
इण्टरनेट पर अबकी
बर्थ-डे मनाना!
माँ का प्यार नहीं खोया
मुश्किल तो था, पर
मेरा आधार नहीं खोया
पत्नी आयी लेकिन
माँ का प्यार नहीं खोया
एक साथ दोनों होने में
है दुश्वारी भी
जोरू का गुलाम भी
माँ का आज्ञाकारी भी
सबका निभा, किसी का भी
अधिकार नहीं खोया
आकर्षण था एक तरफ तो
एक तरफ सम्मान
दोनों में सन्तुलन बिठाना
रहा कहाँ आसान
सिमटे बहुत मगर अपना
विस्तार नहीं खोया
कहीं आधुनिक सोच
कहीं पर थोड़ा पिछड़ापन
हर मुश्किल निपटा देता है
लेकिन निर्मल मन
कितना अच्छा है, हमने
परिवार नहीं खोया