तुम्हारे दर से उठेंगे तो फिर
तुम्हारे दर से उठेंगे तो फिर कहाँ होंगे,
ज़मीं की गोद में सोया इक आसमाँ होंगे।
चला करेगी ये दुनिया बस उन्हीं रस्तों पर,
हमारे नक़्शे-क़दम जिस पे भी अयाँ होगे।
फसाने लाख छुपा लो तुम अपनी आँखों में,
अगरचे उठ गईं पलकें तो सब बयाँ होंगे।
वो बेबसी है हमारी कि तुम से दूर हुए,
हमारे जैसे बहुत तेरे मेहरबाँ होंगे।
मिला जो मौका महकने का तेरे पहलू में,
शिगुफ़्ता फूलों से मा’मूर गुलसिताँ होंगे।
उठी है गूँज जो नाकूस की वो आहें है,
हमारे दर्द ही मस्जिद की भी अजाँ होंगे।
भुला न पाएगी दुनिया भी जिसको सदियों तक,
कभी न ख़त्म हो जो हम ऐसी दास्ताँ होंगे।
भुला दिया है जो तुमने तो कोई बात नहीं,
फसाने ‘राज’ तुम्हारे सर ए जबाँ होंगे।
लगी यूँ झड़ी फिर ख़यालात की
लगी यूँ झड़ी फिर ख़्यालात की,
कटेगी नहीं रात बरसात की।
हँसना अकेले गवाँरा नहीं,
है चाहत हमे फिर मुलाकात की।
इशारों में तुमने ये क्या कह दिया,
बनी गुनगुनाती गज़ल रात की।
न सोचा न समझा न देखा अभी,
कसक सी है दिल में सवालात की।
क्यों जमाने से रिश्ते छुपाते रहें,
नहीं कद्र की उसने जज्बात की।
मुहब्बत तो है रौशनी रूह की,
तबस्सुम खिली चाँदनी रात की।
दिल के झरोख़ों में
वो अपने दिल के झरोख़ों में झाँकता कम है,
उसे ये लगता है चाहत का सिलसिला कम है।
बढ़ा के हाथ भी अब उसकी ओर देख लिया,
हमारे दिल के वो जज़्बात आँकता कम है।
समझ सका न वो फिर भी हमारी फितरत को,
हमारे दिल से तो उस दिल का फासला कम है।
कभी न चूम सका वो तमाम खुशियों को,
मिली हुई हैं जो उनको वो सोचता कम है।
न जाने दिल में ये कैसा धुआं सा घुटता है,
कि उनके बीच दिलों का ये राब्ता कम है।
न सोचना ये कभी भी कि हार जाऊँगी,
खुदा के घर का मेरे दिल से रास्ता कम है।
झुकी है ‘राज’ सदा से ही दर पे दिलबर के,
मेरी अना का मेरे दिल से वास्ता कम है।
तेरे कूचे में हम यूँ ही
तेरे कूचे में हम यूँ ही कभी भटका भी करते थे।
किसी भी रोज हम मिल पायें ये सोचा भी करते थे।
कभी उम्मीद का दामन ये हमसे छूट जाता था,
तुम्हें बस याद करके जानां हम रोया भी करते थे।
बहाना जब भी मिलने का तुमसे सूझता कोई,
हम अपनी बेखुदी के साथ फिर उलझा भी करते थे।
तुम्हारी याद आकर जब लिपट जाती थी बिस्तर से,
जगा करते थे रातों को कभी तड़पा भी करते थे।
हमारी इक झलक के वास्ते बेचैन होकर तुम,
मेरी गलियों की अक्सर ख़ाक तुम छाना भी करते थे।
कभी जब आते घर मेरे मिलन की आस लेके तुम,
बड़ी हसरत भरी नजरों से तुमको ताका भी करते थे।
कभी उस मोड़ पर मुड़ कर तुम्हें मैं देखा करती थी,
अगर तुम मुस्करा देते तो हम शरमाया भी करते थे।
तमाम उम्र वो
तमाम उम्र वो चर्चाओं में ख़बर में रहा,
न की ख़तायें मगर फिर भी एक डर में रहा।
कभी कभी तो वो अजनबी सा लगता है,
जो सारी उम्र मेरे साथ मेरे घर में रहा।
मैं ढूँढ़ती ही रही उसको सारी दुनिया में,
मेरा वो इश्क़ तो मेरे ही चश्मे-तर में रहा।
भुलाती कैसे भला उस को मैं कभी दिल से,
हरेक लम्हा जो इन साँसों के सफर में रहा।
पहुँच सका न कभी दिल तुम्हारी मंजिल तक,
तमाम उम्र ये जानां मगर डगर में रहा।
जिन्दगी सोज़ नहीं
जिन्दगी सोज़ नहीं साज बना कर देखो,
दिल के सोये हुए जज़्बात जगा कर देखो।
फूल ही फूल नजर आयेंगे तुमको जानाँ,
ध्यान काँटों से तुम इक बार हटा कर देखो।
नूर खुशियों का तभी तुमको नज़र आयेगा,
कोहरा मायूसी का इस दिल से हटा कर देखो।
रस्मे उल्फत को निभायें ये नहीं है आसां,
हर तरफ ख़ार हैं दामन को बचा कर देखो।
उलझे उलझे से मेरे दिल में कमी खलती है,
चाहे इक बार सही दिल मे समा कर देखो।
सूख जाये न कहीं यूं ही ये अरमाँ की जमीं,
दिल के आँगन में कोई फूल खिला कर देखो।
जुम्मे को इतवार बनाकर
जुम्मे को इतवार बना कर क्या होगा,
ये बातें बेकार बना कर क्या होगा।
लाखों गुल मुरझाये हों जब दुनिया के,
घर में इक गुलजार बना कर क्या होगा।
कश्ती अगर डुबोने वाले अपने हैं,
फिर कोई पतवार बना कर क्या होगा।
हाथों का बल अगर हमारे छूट गया,
आँखों को अँगार बना कर क्या होगा।
तन्हाई से इश्क हो गया जब हमको,
भीड़ का फिर संसार बना कर क्या होगा।
हुई दोस्ती जब लाचारी से तेरी,
फिर कोई त्योहार बना कर क्या होगा।
कभी दिल से दिल तुम मिला कर
कभी दिल से दिल तुम मिला कर तो देखो।
मुहब्बत की दुनिया बसा कर तो देखो।
है क़ुर्बान तुम पर दिलो-जान मेरे,
कभी तुम मुझे आजमा कर देखो।
ये भर जायेंगे ज़ख़्म दिल के तुम्हारे,
तुम आँखों के मोती लुटाकर तो देखो।
सँवर जायेंगी राहें तन्हा तुम्हारी,
मुझे अपने दिल में बसा कर तो देखो।
बुझा देगा जन्मों की तशनालबी को,
ये जामे-मुहब्बत पिला कर तो देखो।
चले आयेंगे छोड़ कर हम जमाना,
तुम आवाज मुझको लगा कर तो देखो।
हर इक दर्द मिट जायेगा एक पल में,
लगे चोट जब मुस्करा कर तो देखो।
हंसीं होंगे सारे मनाजिर जहाँ में
तुम अपनी शिकायत भुला कर तो देखो।